Archive | ग्रामीण भारत

यूनिसेफ की टीकाकरण मीडिया कार्यशाला के दूसरे दिन ग्रामों का भ्रमण

Posted on 16 May 2012 by admin

ग्राम नौपुरा  और बहेरा में टीकाकरण पर जनता से चर्चा

anm-of-naupura-explaining-immunization-programme-details-to-media-worshop-participantsबच्चों के नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में मीडिया द्वारा रचनात्मक सहयोग पर यूनिसेफ द्वारा यहां आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन मीडिया प्रतिनिधियों ने आज विकास खण्ड बरौली अहीर के दो ग्रामों -नौपुरा और बहेटा का दौेरा कर स्थिति का मौके पर जायजा लिया और ग्रामवासियों व लाभार्थी महिलाओं से उनकी समस्याओं और सुझावों पर चर्चा की। मीडिया प्रतिनिधियों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर दी जा रही स्वास्थ्य सेवाओं को देखा और पोलियो वैक्सीन के रख रखाव हेतु कोल्ड चेन प्रबन्धन का अवलोकन किया।
यूनिसेफ तथा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ मीडिया के दो समूहों में से एक ने ग्राम बहेटा और दूसरे ग्रुप ने नौपुरा का दौरा किया। उपकेन्द्र बहेटा पर हर महीने तीसरे बुधवार को टीकाकरण किया जाता है जिसकी जानकारी सभी ग्राम वासियों को रहती है। यहां डयुटी पर तैनात ए.एन.एम.-भू देवी ने बताया कि ग्राम में एक वर्ष तक की आयु के 40 बच्चे टीकाकरण हेतु दर्ज है जिनके कार्ड बने है। टीकाकरण दिवस पर आशा तथा आगनबाडी कार्यकत्री बुलावा टीम के रूप में सहयोग करती है।
ग्राम वासियों ने टीकाकरण तथा अन्य कार्यक्रमों की जानकारी उप केन्द्र पर भी लिखवाने तथा ग्राम स्तर पर गठित ग्राम स्वच्छता समिति को सक्रिय किये जाने की जरूरत बताई। चिकित्सा अधीक्षक डा0 संजीव बर्मन ने अवगत कराया कि ग्राम में शीघ्र ही चिकित्सा शिविर का आयोजन किया जायेगा। डा0 बर्मन ने बताया कि उनके सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र के अन्तर्गत स्वीकृत 28 ए.एन.एम. में से 23 कार्यरत है इसलिए कुछ स्थानों पर ए.एन.एम. को उपकेन्द्र का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया है।
इसी प्रकार ग्राम बहेटा के स्वास्थ्य केन्द्र पर कार्यरत ए.एन.एम. सुश्री थामस ने ग्राम में नवजात शिशुओं तथा गर्भवती महिलाओं को दिये जा रहे टीकाकरण के मामलों पर मीडिया समूह को अवगत कराते हुए उनकी जिज्ञासाओं का भी समाधान किया ।
distt-immunization-officer-alongwith-unicef-reprentatives-usha-rai-visited-benta-chc-for-media-workshop-exerciseसंयुक्त निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डा0 श्री राम ने जनपद में संचालित स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी दी । जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा0 अनुपम भास्कर ने बताया कि जनपद में 394 स्वास्थ्य उप केन्द्र है जिनमें से 294 पर ए.एन.एम. कार्यरत है। अन्य स्थानों पर भर्ती हेतु कार्यवाही की जा रही है।
अन्त में यूनीसेफ की ओर से न्यू कन्सेप्ट इन्फोरमेशन की ऊषा राय, अश्वनी भट्नागर तथा अतुल ने प्रतिभागियों से फीड बैक प्राप्त कर भविष्य के आयोजनों तथा टीकाकरण के लिए जन जागरूकता हेतु बेहतर कार्यवाही किये जाने का विश्वास दिलाया ।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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राष्ट्रव्यापी भ्रमण का शुभारम्भ

Posted on 11 June 2011 by admin

लखनऊ। हर्ष मेयर, जो कि आइ एम कलाम फिल्म के लिए 58वें राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता है ने आइ एम कलाम के फस्र्ट लुक की लाँच लखनऊ से करते हुए अपने राष्ट्रव्यापी भ्रमण का शुभारम्भ किया। देश में विभिन्न शहरों में वे फिल्म के फस्र्ट लुक को लाँच करेंगे और स्माइल फाउंडेशन से लाभान्वित बच्चों के साथ अपनी यात्रा की सफलता का जश्न मनाऐंगे। स्माइल फाउंडेशन एक देशव्यापी विकास संगठन है जिसने 150 विकास परियोजनाओं के माध्यम से भारत के 22 राज्यों में 200,000 से अधिक पिछड़े बच्चों और युवाओं को लाभान्वित किया है। आई एम कलाम नील माधब पांडा के निर्देशन की पहली फिल्म है जो स्माइल फाउंडेशन द्वारा निर्मित की गई है। किसी विकासात्मक संगठन द्वारा निर्मित अभी तक की यह पहली फिल्म है।
इस फिल्म के माध्यम से स्माइल फाउंडेशन ने प्रत्येक बच्चे के स्कूल जाने के सपने को पूरा करने की दिशा में सहयोग के लिऐ पूरे विश्व के लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन तक पहुंचने का प्रयास किया है। असाधारण सामग्री से पहले से रूबरू दुनिया में लोगों का ध्यान सामान्य अपीलों द्वारा अधिक आकृष्ट करने की संभावनाएं कम होती है। इसीलिए स्माइल फाउंडेशन ने एक आधुनिक कथात्मक तरीके से एक अति महत्वपूर्ण आह्वान को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु सहयोग जुटाने के लिए अधिकतम संख्या में लोगों तक पहुंचा जा सके।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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भ्रष्टाचार नही चाहिये इस लिये बगावत करते हैः स्वामी अग्निवेश

Posted on 30 April 2011 by admin

सुलतानपुर - भ्रष्टाचार के विरोध मे सुप्रसिद्ध गाधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे के अस्वस्थ हो जाने के कारण आज उन्होने दूरभाष के जरिये जनपद के नगर स्थित तिकोनिया पार्क में पूर्व घोषित कार्यक्रम के अन्तर्गत उपस्थित हजारों समर्थकों को सम्बोधित किया। टेलीफोन के जरिये श्री हजारे ने अपने अस्वस्थ होने के कारण कार्यक्रम मे न पहंचने पर जन-समुदाय से दुखः व्यक्त किया। श्री हजारे ने कहा कि 60 वर्ष आजादी मिलने के बाद भी देश में भ्रष्टाचार खत्म नही हुआ। देश में भ्रष्टाचार महामारी बन गया है। इसे दूर करना है,आज कोई गांव व क्षेत्र इससे अछूता नही है। सामान्य लोगों का जीवन जीना मुस्किल हो रहा है, गरीब कैसे जी सकता है। कई घोटाले उजागिर हो रहे है। गांधी जी ने सपना देखा था कि बलशाली भारत होने का। जब तक गांव के लोग खडे नही होगें, कैसे गावं का विकास होगा। एक तरफ विकास का कार्य बाधित हो रहा है। भिखारी भी टैक्स भरता है, परन्तु जनता का धन श्वीस बैंको में तथा बंगले बनाने मे खर्च हो रहा है। धन हमारा, पर व्यय भ्रष्टाचारी कर रहें है। जिसकी लड़ाई मै 25 वर्षो से लड़ रहा हूं। अभी 6 मंत्री धरे गये। 400 से अधिक येाजनाये की गड़वडी में घोटाला उजागिर हुआ था। मैं मृत्यु से नही डरता, मै मृत्यु को हथेली पर लेकर लड़ रहा हूँ। इन्ही भ्रष्टाचारियों कारण आज जब बच्चा पैदा होता है तो वह 25 हजार रूप्ये कर्ज की गठरी लेकर आता है। जिसमे इनका क्या दोष है। इसके पूर्व सभा को सम्बोधित करते हुए स्वामी अग्निवेश जी ने कहा कि अन्ना जी ने जो अलख जगाया है, उसको जीवित रखना तथा जन लोकपाल विल को पास कराना हम सब की जिम्मेदारी है। जनलोकपाल विल जब पास हो जायेगी तो हम भ्रष्टाचार पर लगाम लगा सकते हे। जनता तुम आगे बढो अन्ना, अरविन्द केजरीवाल, मौलाना कल्बे आपके साथ है। गांव-गांव में समितियों का गठन करो जिसमें महिलाओं की भी जिम्मेदारी निश्चित करो। पर्यावरण की दृष्टि से श्री अग्निवेष ने कहा कि स्वागत के समय जो फूलो की माला पहनाते है इन मालाओं से स्वागत न करके इन फूलों को खिलने देने चाहिये जिससे पर्यावरण शुद्व रहें। जन सभा में उपस्थित जशपाल भट्टी ने कहा कि यदि भ्रष्टाचार नही मिटायेंगे तो अपने बच्चों को इमानदार व्यक्ति चिडियाधर में ले जाकर दिखाना पडेगा। करेप्शन को मिटाने के लिये उन्होने जनसमुदाय से आवाह्न करते हुए कहा कि अगर आप इस बार शिथिल पड गये तो भविष्य में दुबारा आप इस पर अकुंश नही कर पायेगें। मशहूर पत्रकार शाजिया इल्मी ने कहा कि  रिश्वत राज, रिश्वत सत्ता, रिश्वत से हटने का विकल्प नही है। बडी क्रान्ति बडा इन्क्लाब है….। जनता का साथ ही इस आन्दोलन की जान है। मो. कल्बे जौआद ने कहा कि सबको झूठे दिलाशे दिये जा रहे है। जनता इन भ्रष्टाचारियों से पीडित है। कुरान में जितने भी पैगम्बर नुमाइन्दे भेजे गये उनका एक ही मकसद था कि नाइन्शाफी,जुल्म,व अत्याचार खत्म हो। धर्म वा धार्मिक कर्तव्य यह बनता है कि मै इनका साथ दूं। भ्रष्टाचार को खत्म करना असली जेहाद है।
अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली, लखनऊ की ताकते ये जान ले कि यह तूफान है जो आप की कुर्सी उड़ा ले जायेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जो ये मुहिम चलायी गयी, उस समय इतने जन सर्मथन की उम्मीद नही थी जो आज मिल रहा है। लगता है कि दैवीय शक्ति इस आन्दोलन का संचालन कर रही है। विरोधियों द्वारा टीम को तोडने की कोशिश की गयी। लाख तरीके  प्रहार किये गये जिसके लिये सभी विरोधी ताकतें एक हो गयी। हमारे पास सच्चाई है, जिसकी जीत होगी। जन सभा में आर्ट आफ लिविंग, गायत्री परिवार, किसान मजदूर युनियन, रोडवेज इम्प्लाएज एशोसिएशन, बैकं आफ बडौदा पूर्वी, शिक्षक वर्ग, भारत भारती, आजाद सेवा समिति, जनपद के विभिन्न समाज सेबी सस्थायें, पत्रकार संगठन अपने सहयेगियों के साथ मौजूद रहे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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भारत सरकार की फैलोशिप के लिए लखनऊ से अकेले सी.एम.एस. छात्र राहुल चयनित

Posted on 30 April 2011 by admin

लखनऊ-सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर कैम्पस के कक्षा 12 के छात्र राहुल त्रिवेदी ने भारत सरकार की अखिल भारतीय किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना की फैलोशिप के लिए चयनित होकर प्रदेश का गौरव सारे देश में बढ़ाया है। इस फैलोशिप के लिए लखनऊ से अकेले राहुल का चयन हुआ है। यह जानकारी सी.एम.एस. के मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी श्री हरि ओम शर्मा ने दी। श्री शर्मा ने बताया कि इस योजना के अन्तर्गत विज्ञान की उत्कृष्ट प्रतिभा रखने वाले छात्रों का चयन इण्डियन इन्स्ट्टीयूट आफ साइन्स, बंगलौर द्वारा प्रतिवर्ष किया जाता है। विज्ञान की उभरती प्रतिभाओं को शोध वैज्ञानिक के रूप में प्रोत्साहित करने के लिए इस योजना को भारत सरकार के साइन्स एण्ड टेक्नोलाजी डिपार्टमेन्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत सी.एम.एस. के प्रतिभावान छात्र राहुल को मोहाली के इण्डियन इन्स्ट्टीयूट आफ साइन्स एजुकेशन एण्ड रिसर्च में 6 से 10 जून 2011 तक आयोजित समर प्रोग्राम के लिए आमंत्रित किया गया है। सी.एम.एस. के मेधावी छात्र राहुल ने अपनी शैक्षणिक योग्यता के बल पर सफलता का परचम लहराया है। राहुल त्रिवेदी लखनऊ के मण्डलायुक्त श्री प्रशांत त्रिवेदी, आई.ए.एस. के सुपुत्र हैं।
श्री शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक, मानवीय तथा विश्वव्यापी दृष्टिकोण के धनी राहुल विज्ञान की शोधों के द्वारा सारी मानव जाति को एकता के सूत्र में बाँधेंगे तथा सी.एम.एस. के ‘विश्व शांति’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना पूरे विश्व में प्रसारित करेंगे। राहुल ने अपनी सफलता का श्रेय शान्तिपूर्ण व ईश्वरीय एकता से भरपूर विद्यालय के शैक्षिक वातावरण, अपने अनुभवी एवं विद्वान शिक्षकों के आत्मीयतापूर्ण मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन तथा माता-पिता के आशीर्वाद को दिया है।
श्री शर्मा ने बताया कि सी.एम.एस. में वैज्ञानिक युग के महत्व को स्वीकारते हुए छात्रों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक, मानवीय एवं विश्वव्यापी बनाने के उद्देश्य से जोरदार प्रयास किये जा रहे हैं। सी.एम.एस. के मेधावी छात्रों ने विज्ञान, कम्प्यूटर टैक्नोलाजी, इण्टरनेट एवं साइवर स्पेस, एस्ट्रोनाॅमी आदि विषयों की अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में सर्वाधिक पुरस्कार जीतकर प्रदेश व देश का नाम राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर रोशन किया है।

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सामाजिक संगठनों का`चित्रकूट घोशणा पत्र´

Posted on 07 October 2010 by admin

02उ0प्र0 में पंचायत राज्य सम्बन्धी कार्यशालों व जन सुनवाईयों से उपलब्ध हुई जानकारी को प्रदेश की विभिनन्न सामाजिक संगठनों तथा मीडिया को रूबरू कराने के उद्देश्य से इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साईसिस व एसोसिएशन ऑफ लोकल गवनेZस ऑफ इण्डिया एवं अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के तत्वाधान में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में वरिश्ठ पत्रकार भारत डोगरा तथा भागवत प्रसाद ने कार्यशालों में एकत्र हुए आंकड़ों को पेश करने हुऐ कहा पंचायत राज के सुधार संबधी चर्चा के लिए यह बहुत अनुकुल वक्त है क्योंकि यह सुधार चुनाव-प्रक्रिया से ही प्रारम्भ हो जाना चाहिए। पंचायत राज के महत्व से किसी को इंकार नही, इसमें लोकतन्त्र को मजबूत करने की अमूल्य सम्भावना है पर क्या हम वास्तव में इन संभावनाओं को प्राप्त कर सके हैंर्षोर्षो पंचायज राज की हकीकत क्या हैर्षोर्षो इन सवालों के उचित जवाब पर ही पंचायत राज का सुधार-कार्य आधारित होगा सही उत्तर प्राप्त करना, सही समझ बनाना जरूरी है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही जुलाई से सितम्बर के बीच उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में पंचायत राज पर पांच कार्यशालाअोंं व दो जन-सुनवाईयों का आयोजन किया गया। इन कार्यशालाओें व जन-सुनवाईयों का आयोजन दिल्ली में पंचायत राज की सफलता के लिए प्रयासरत दो संस्थाओं ने किया जिनके नाम है-इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साईसिस व एसोसिएशन ऑफ लोकल गवनेZस ऑफ इण्डिया। इस प्रयास की सफलता में बड़ी भूमिका स्थानीय सहयोगी संस्थाओं की थी अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान (चित्रकूट), गोरखपुर एन्वायरमेन्टल एक्शन ग्रुप (गोरखपुर) इंस्टीच्यूट ऑफ गांधीयन ट्रस्ट (वाराणसी) व दिशा (सहारनपुर) व कार्यशालाओं व जनसुनवाईयों में मुख्य रूप से पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों व पंचायत राज पर कार्य कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही।

चित्रकूट में आयोजित कार्यशाला में लगभग 120 निर्वाचित प्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में सर्वसम्मति से पंचायत राज पर घोशणा पत्र जारी किया गया जिसे `चित्रकूट घोशणा पत्र´ कहा गया। अन्य कार्यशालाओं में भी इस घोशणा पत्र को समर्थन मिला। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही कि पंचायतों में भ्रश्टाचार व कमीशनबाजी समाप्त करने, पारदशीZ व्यवस्था बनाने व अन्य विवादास्पद मुद्दों पर एकमत से घोशणा पत्र जारी हो सका। इसे व कार्यशालाओं व सुनवाईयों की रिपोर्ट को हिन्दी में सही राह पर कैसे आये पंचायत राज शीशZक से जारी किया गया। कार्यशाला में अखिलभारतीय सेवा संस्थान के संस्थापक गोपाल भाई ने पंचायत चुनाव में आम आदमी को जागरूक करने के उद्देश्य से विभिन्न शीशZक युक्त सात पोस्टर जारी किये। इन पोस्टरों के जरिये पंचायत चुनाव मतदाता जागरूकता अभियान की शुरूआत की गई। इस अवसर पर विचार व्यक्त करते हुये कहा कि नौकर शाही चर रही जनता का धन आज, केवल सजग-प्रधान ही राखे सबकी लाज, रमुआ खड़ा बिसूरता किसको दू मैं वोट, बढ़ चढ़ कर सब लूटते बची न एकौ ओट। कार्यशाला मेें बुन्देलखण्ड के सेवा संस्थान के वासुदेव, लोकमित्र रायबरेली के अमृत लाल, अग्निवेद समग्रविकास समिति के अनिल चन्द, डा0 राजेश वर्मा, राजीव रंजन झॉ, के.एन. तिवारी, अवनीश कल्कि सहित अनेक लोगों ने भागीदारी की।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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राष्ट्र मण्डल खेल के दौरान लघु उद्यम एवं हस्तशिल्प उत्पादों का व्यापक प्रचार हो

Posted on 07 September 2010 by admin

हस्तशिल्प पेन्शनरों की पेन्शन सीधे खाते में जाने की व्यवस्था हो

जिले की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कौशल प्रशिक्षण दिया जाय

लखनऊ-  निर्यात प्रोत्साहन के लिए राष्ट्र मण्डल खेलों के दौरान प्रदर्शनी में उच्च गुणवत्ता के सभी हस्तशिल्प उत्पाद बिक्री तथा प्रदर्शन हेतु रखे जायें, जिससे प्रदेश के इन उत्पादों को देश एवं विदेश में व्यापक प्रचार मिल सके। निर्यात में तीन वर्षो में 101 प्रतिशत बढ़ोत्तरी निर्यात निगम को एक सराहनीय उपलब्धि है।

यह बात लघु उद्योग मन्त्री श्री चन्द्रदेव राम यादव ने आज यहॉं मासिक समीक्षा बैठक में कही। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को निर्देंश दिये कि जिले के उद्यम एवं हस्तशिल्प आदि की व्यावहारिक स्थितियों के अनुसार बेरोजगारों को कौशल प्रशिक्षण दिलाया जाये। प्रशिक्षित युवकों को स्व उद्यम की स्थापना या रोजगार पाने में भी मदद की जाये। हस्तशिल्प पेन्शनरों के बैंक आफ बड़ोदा में खाते खुलवाकर, 130 पेन्शनरों की आगामी किश्त उनके खातों में सीधे भेजे जाने की व्यवस्था की जाये। उन्होंने दो संयुक्त निदेशकों को अपेक्षित प्रगति न होने पर चेतावनी जारी करने के निर्देंश दिये हैं

इस अवसर प्रमुख सचिव श्रीयुत् श्री कृष्ण, उद्योग निदेशक श्री मो0 इफ्तेखारूद्दीन सहित सभी वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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मणिपुर के बच्चे कहाँ जाएं

Posted on 27 August 2010 by admin

मणिपुर में उग्रवाद और उग्रवाद के विरोध में जारी हिसंक गतिविधियों के चलते बीते कई दशकों से बच्चे हिंसा की कीमत चुका रहे हैं। यह सीधे तौर से गोलियों और अप्रत्यक्ष तौर से गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण की तरफ धकेले जा रहे हैं. राज्य में स्थितियां तनावपूर्ण होते हुए भी कई बार नियंत्रण में  तो बन जाती हैं, मगर स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे बुनियादी ढ़ांचे कुछ इस तरह से चरमराए हैं कि बच्चों और मरीजों का विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरना यहां के लिए आम बात लगने लगती है।

इनदिनों हम मणिपुर के इलाकों में यहां के हालातों को समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्राई हिंसा से सबसे ज्य़ादा प्रभावित तीन जिलों चंदेल, थौंबल और चुराचांदपुर में काम कर रहा है। क्राई द्वारा यहां जगह-जगह बच्चों के सुरक्षा समूह बनाने गए हैं, और बहु जातीय समूहों में आत्मविश्वास जगाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। ऐसी ही एक कार्यशाला के बाद क्राई से असीम घोष बता रहे हैं कि ‘‘यहां के बच्चे डर, रहस्य, अनिश्चिता और हिंसा के साये में लगातार जी रहे हैं, यहां जो माहौल है उसमें बच्चे न तो सही तरीके से कुछ सोच सकते हैं, न ही कह, कर या कोई फैसला ही ले सकते हैं. इसलिए कार्यशालाओं के पहले स्तर में हमारी कोशिश बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान बनाने की रहती है।’’

मणिपुर में बच्चों को हिंसा के प्रभाव से बचाने के लिए क्राई द्वारा सरकार और नागरिक समूहों से लगातार मांग की जाती रही है।  इनदिनों यह संस्था राष्ट्रीय स्तर पर जैसे कि बच्चों के अधिकारों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग और संबंधित मंत्रालयों पर दबाव बना रही है कि वह मणिपुर में हिंसा से प्रभावित बच्चों की समस्याओं और जरूरतों को प्राथमिकता दें। अहम मांगों में यह भी शामिल है कि अतिरिक्त न्यायिक शक्तियों से सुसज्जित सेना यह सुनिश्चित करे कि हिंसा और आघातों के बीच किसी भी कीमत पर बच्चों को निशाना नहीं बनाया जाएगा। इसी के साथ ही राज्य में किशोर न्याय देखभाल के प्रावधानों और संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार किशोर न्याय प्रणाली को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू किया जाएगा। राज्य के अधिकारियों पर सार्वजनिक सुविधाओं पर निवेश बढ़ाने और अधिकारों से संबंधित सेवाओं जैसे प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं, बच्चों के लिए आर्ट यानी एंटी रेट्रोविरल थेरेपी और स्कूल की व्यवस्थाओं को दुरुस्त बनाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. दरअसल प्राथमिकता के स्तर पर अधिकारों से संबंधित सेवाओं को दुरुस्त बनाने के दृष्टिकोण को सैन्य दृष्टिकोण से ऊपर रखे जाने की जरूरत है।

मणिपुर में आंतकवाद से संबंधित घातक परिणामों के चलते 1992-2006 तक 4383 लोग भेट चढ़ गए हैं. जम्मू-काश्मीर और असम के बाद मणीपुर देश के सबसे हिंसक संघर्षों का क्षेत्र बन चुका है। अंतर जातीय संघर्ष और विद्रोह की वजह से 1950 को  भारत सरकार ने इस राज्य में एएफएसपीए यानी सशक्त्र बलों के विशेष शक्ति अधिनियम लागू किया। इस अधिनियम ने विशेष बलों को पहली बार सीधे सीधे हमले की शक्ति दी, जो कि सुरक्षा बलों के लिए प्रभावी ढंग से व्यापक शक्तियों में रूपांतरित हो गई। यहां जो सामाजिक सेवाएं हैं, वह भी अपनी बहाली के इंतजार में हैं, जहां स्कूल और आंगनबाड़ियां सही ढ़ंग से काम नहीं कर पा रही हैं, वहीं जो थोड़े बहुत स्वास्थ्य केन्द्र हैं वह भी साधनों से विहीन हैं। प्रसव के दौरान चिकित्सा व्यवस्था का अकाल पड़ा है। न जन्म पंजीकरण हो रहा है और न जन्म प्रमाण पत्र बन रहा है। अनाथ बच्चों की संख्या बेहताशा बढ़ रही है, बाल श्रम और तस्करी को भू मंडलीकरण के पंख लग गए हैं, और बेकार हो गए परिवारों के बच्चे वर्तमान संघर्ष का हिस्सा बन रहे हैं। बच्चों के लिए खेलने और सार्वजनिक तौर पर आपस में मिलने के सुरक्षित स्थान अपना पता बहुत पहले ही खो चुके हैं।

गैर सरकारी संस्थाओं के अनुमान के मुताबिक  मणिपुर में व्याप्त हिंसा के चलते  5000 से ज्यादा महिलाएं विधवा हुई हैं, और 10000 से ज्यादा बच्चे अनाथ हुए हैं। अकेले जनवरी- दिसम्बर 2009  के आकड़े देखें जाए तो सुरक्षा बालों द्वारा 305 लोगों को कथित तौर पर मुठभेड़ में मार गिराए जाने का रिकार्ड दर्ज है। बन्दूकी मगर गैर राजकीय हिंसक गतिविधि में 139  लोगों के मारे जाने का रिकार्ड मिलता है। विभिन्न हथियारबंद वारदातों के दौरान 444 लोगों के मारे जाने का रिकार्ड मिलता है। जबकि नवम्बर 2009 तक कुल 3348 मामले दर्ज किए गए हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले देखें तो 2007 से 2009 तक कुल 635 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें 24 हत्याओं और  86 बलात्कार के मामले हैं।  बाल तस्करी का हाल यह है कि जनवरी 2007 से जनवरी 2009 तक अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर  198 बच्चे तस्करी का शिकार हुए हैं।  बाल श्रम के आकड़ों पर नज़र डाले तो 2007 को श्रम विभाग, मणिपुर द्वारा कराये गए सर्वे में 10329 बाल श्रमिक पाए गए। जहां तक स्कूली शिक्षा की बात है तो सितम्बर 2009 से जनवरी 2010 तक 4 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूलों में हाजिर नहीं हो सके और सरकारी स्कूली व्यवस्था तो यहां जैसे एक तरह से विफल ही हो गई है।

शिरीष खरे

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रोल ऑफ यू0पी0 टूरिज़्म विज-ए-विज ट्रैवल एडवाइजर्स विषय पर कार्यशाला सम्पन्न

Posted on 21 August 2010 by admin

लखनऊ -   पर्यटन एक बहुत बड़ा विषय है। इस क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिये पर्यटन विभाग के लिये जरूरी है कि सम्बंधित अन्य विभागों से अच्छा तालमेल हो ताकि मिल-जुलकर कठिनाइयों को दूर किया जा सके। ´रोल ऑफ यू0पी0 टूरिज्म विज-ए-विज ट्रैवल एडवाइजर्स´ विषय पर पर्यटन भवन, गोमती नगर में पहलीबार आयोजित कार्यशाला में बातचीत के दौरान पर्यटन सचिव श्री अवनीश अवस्थी ने उक्त विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि इस आयोजन के माध्यम से ट्रैवल ट्रेड से एक संवाद कायम करना हमारा मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि जल्दी ही पर्यटन विभाग की हेल्प लाइन को बनाने का निर्णय लिया जायेगा ताकि देश-विदेश से आने वाले पर्यटक को असुविधा न हो।

कार्यशाला में वाराणसी, आगरा, लखनऊ और कानपुर से आये ट्रैवल एडवाइजर्स ने अपने प्रेजेन्टेशन के माध्यम से शहर की सफाई की ओर ध्यान आकर्षित करवाने का प्रयास किया। वाराणसी टूरिज़्म गिल्ड के प्रेसिडेंट श्री जावेद खान ने कहा कि पर्यटन एक विस्तृत विषय है, इस पर बात करने के लिये हमें पूरे भारत को अपने दिमाग में रखना होगा। उन्होंने कहा कि एक पर्यटक की दृष्टि से यदि हम वाराणसी को देखें तो शहर के विकास से जुड़े सभी विभागों से सम्पर्क स्थापित करते हुये कार्य की दिशा तय करनी होगी। उन्होंने वाराणसी में सड़कों की मरम्मत एवं सफाई की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुये कहा कि पंचकोशी परिक्रमा मार्ग का विशेष रूप से विकास किया जाना चाहिये, क्योंकि पर्यटक इसी मार्ग से सारनाथ जाते हैं। उन्होंने बनारस के ट्रैफिक में भी सुधार लाने के सुझाव दिये। श्री जावेद खान ने कहा कि ट्रैवल ट्रेड का जो भी सरकारी कार्यक्रम होगा उसमें वे अपना सहयोग देने के लिये तैयार हैं।

श्री सुनील सत्यवक्ता ने लखनऊ पर अपनी बात शुरू करने से पहले पर्यटन विभाग को धन्यवाद देते हुये कहा कि यह पहला मौका है कि हमें कुछ कहने के लिये आमन्त्रित किया गया है। उन्होंने कहा कि पर्यटक की सुविधा के लिये शहर में यातायात के साधनों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बड़ा इमामबाड़ा एवं रेजीडेंसी के आस-पास की सड़कों पर सफाई करवाने, बसों के रूकने की व्यवस्था करवाने एवं टूरिस्ट गाइड को प्रत्येक ऐतिहासिक इमारतों में तैनात करने के लिये उपयोगी सुझाव दिये। इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय टूर के सम्बंध में भी अपना सहयोग देने के लिये कहा।

उन्होंने रेजीडेन्सी में होने वाले लाइट एण्ड साउण्ड शो को पुन: शुरू करने के लिये कहा। इनके अतिरिक्त अवीक घोष, समीर शर्मा एवं महातिम सिंह ने भी मुख्य विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।

इस मौके पर पर्यटन निगम ने जानकारी दी कि पर्यटन सम्बंधी किसी भी आयोजन के लिये पर्यटन भवन का प्रेक्षागृह नि:शुल्क दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि ट्रैवेल एजेंट्स के लिये मानक बनाने पर भी विभाग विचार कर रहा है। उन्होंने बताया कि एजेंटों को मानक के अनुसार प्रमाण पत्र दिया जायेगा ताकि पर्यटकों को सुविधा हो। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा ताज महल की वेबसाइट 02 अगस्त को शुरू की गई थी, जिसको अब तक 100543 लोग विजिट कर चुके हैं। इतने कम समय में यह एक बड़ा कीर्तिमान है। उन्होंने कहा कि पर्यटन विभाग अतिथि देवो भव: की भावना के साथ अपने कर्तव्य निर्वहन के लिये प्रतिबद्ध है।

इस कार्यशाला में मान्यवर कांशीराम पर्यटन प्रबंध संस्थान के निदेशक, श्री अरूण नागरकर के साथ संस्थान के छात्रों ने भी भाग लिया। इसके अतिरिक्त सभी जिलों से आये क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी, पर्यटन विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारी वहॉ उपस्थित थे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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बेहाल बुंदेले बदहाल बुंदेलखंड - 2

Posted on 10 August 2010 by admin

अपनी वीरता और जुझारूपन के लिए प्रसिद्ध बुंदेलखंड में कई सालों के सूखे, इसके चलते पैदा कृषि संकट और इनसे निपटने की योजनाओं में भ्रष्टाचार ने पलायन और आत्महत्याओं की एक अंतहीन श्रृंखला को जन्म दे डाला है। तसवीरें और रिपोर्ट रेयाज उल हक

सही है कि पूरे बुंदेलखंड में लगभग 2 लाख 80 हजार कुओं में से अधिकतर बेकार पड़ गए हैं - या तो मरम्मत के अभाव में वे गिर गए हैं या वे सूख गए हैं- लेकिन थोड़े-से रुपए खर्च करके उन्हें फिर से उपयोग के लायक बनाया जा सकता है। मगर पंचायतों और अधिकारियों का सारा जोर नए कुएं-तालाब खुदवाने पर अधिक रहता है। ऐसा इसलिए होता कि इनमें ठेकेदारों, जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को फायदा होता है। पचपहरा के पूर्व प्रधान और महोबा के किसान नेता पृथ्वी सिंह इस प्रक्रिया को समझाते हैं, ‘मान लीजिए कि लघु सिंचाई विभाग के पास पैसा आया और उसे यह खर्च करना है। तो वे पुराने कुओं की मरम्मत पर खर्च नहीं करेंगे, क्योंकि उसमें बहुत कम खर्च आएगा। वे एक नया कुआं खोदेंगे। इसमें तीन लाख रुपए की लागत आती है। विभाग का मानक अगर 20 फुट का है तो ठेकेदार 20 फुट गहरा कुआं खोद कर चले जाएंगे। उन्हें इससे मतलब नहीं है कि इतनी गहराई पर कुएं में पानी है भी कि नहीं।’

नतीजे सामने हैः फसलें बरबाद हो रही हैं। किसान बदहाल हैं। परिवार उजड़ रहे हैं। इसने इलाके के पुराने गौरवों को भी अपनी चपेट में लिया है। कभी महोबा की एक पहचान यहां उगने वाले पान से भी थी। मगर दूसरी और वजहों के अलावा पानी की कमी के कारण आज शहर से जुड़ी पट्टी में इसकी खेती पूरी तरह से चौपट हो चुकी है और करीब 5 हजार परिवार बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं।

यह बरबादी बहुआयामी है। अभी कुछ साल पहले तक महोबा के ही कछियनपुरवा गांव के 70 वर्षीय पंचा के पास सब-कुछ था। उनके चार बेटों और तीन बहुओं का परिवार अच्छी स्थिति में था। उनके 21 बीघा (करीब तीन एकड़) खेतों ने कभी साथ नहीं छोड़ा था। लेकिन पिछले दस साल में सब-कुछ बदल गया। पहले पानी बरसना कम हुआ, इसके बाद बारी आई फसलों के सूखने की। इतनी लंबी उमर में उन्होंने जो नहीं देखा था वह देखा- गांव के पास से गुजरती चंद्रावल नदी की एक नहरनुमा धारा सूख गई, लोगों के जानवर मरने लगे। घरों पर ताले लटकने लगे। अब तो उनकी बूढ़ी आंखों को किसी बात पर हैरत नहीं होती, पिछले साल ’कुआर’ (अगस्त-सितंबर) में 16 बीघे में लगी अपनी उड़द की फसल के सूखने पर भी नहीं।

दो दिनों से आसमान में बादल आ-जा रहे हैं और धूप न होने का फायदा उठाते हुए वे अपने छप्पर की मरम्मत कर रहे हैं। उनकी उम्मीद बस अब अच्छे मौसम पर टिकी है। जितना उन्होंने देखा और समझा है उसमें पंचायत और सरकार से कोई उम्मीद नहीं रह गई है। वे बताते हैं, ‘जब फसल सूखी तो हमें बताया गया कि सरकार इसका मुआवजा दे रही है। चार महीने चरखारी ब्लॉक के चक्कर लगाने के बाद मुझे दो हजार रुपए का चेक मिला। यह तो फसल बोने में लगी मेरी मेहनत जितना भी नहीं है। क्या 16 बीघे की उड़द को आप 20 दिनों की मेहनत में उपजा सकते हैं?’

आज उनका घर बिखर-सा गया है। उनके चारों बेटे पंजाब में रहते हैं। दो बहुएं घर छोड़कर किसी और के साथ जा चुकी हैं। उनकी जमीनें अब साल-साल भर परती पड़ी रहती हैं।

हमारे आग्रह पर उनकी पत्नी बैनी बाई शर्माते हुए बारिश या सूखे से जुड़ा कोई गीत याद करने की कोशिश करती हैं, लेकिन शुरू करते ही उनकी सांस उखड़ने लगती है। सांस उखड़ने की यह बीमारी उन्हें लंबे समय से है, जिसका इलाज वे चार साल से सरकारी डॉक्टर के यहां करा रही हैं। उन्हें बारिश के साथ एक अच्छे (लेकिन सस्ते) डॉक्टर का भी इंतजार है जो इस बीमारी को ठीक कर दे। इसके बावजूद कि राशन के कोटेदार ने पिछले सवा दो साल में पंचा को सिर्फ एक बार 20 किलो गेहूं और 2 लीटर मिट्टी का तेल दिया है, और इस बात को भी आठ माह हो चुके हैं, वे पूरी विनम्रता से मुस्कुराते हैं। आप उनकी मुस्कान की वजहें नहीं जानते लेकिन उनमें छिपी एक गहरी पीड़ा को जरूर महसूस कर सकते हैं।

पंचा थोड़े अच्छे किसान माने जा सकते हैं क्योंकि उनके पास करीब तीन एकड़ खेत हैं। लेकिन बुंदेलखंड में एेसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जिनके पास या तो बहुत कम जमीन है या वे भूमिहीन हैं। उनके पास दूसरों के खेतों में काम करने का विकल्प भी नहीं बचा है, क्योंकि खेती का सब जगह ऐसा ही हाल है। तब वे पलायन करते हैं और दिल्ली-लखनऊ जैसे शहरों के निर्माण कार्यों तथा कानपुर के ईंट-भट्ठों में जुट जाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता और पानी के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले और एक कालजयी पुस्तक आज भी खरे हैं तालाब लिखने वाले अनुपम मिश्र इस पर तंज स्वर में कहते हैं, ‘अगर सूखे और अकाल की स्थितियां न होतीं तो राष्ट्रमंडल खेल कैसे होते भला!’

महोबा स्थित एक एनजीओ कृति शोध संस्थान की एक टीम ने जब इस साल फरवरी में जिले के आठ गांवों का दौरा किया तो पाया कि यहां के कुल1,689 परिवारों में से 1,222 परिवार पलायन कर चुके हैं। इनमें से 269 घरों पर ताले लटके हुए थे जबकि 953 परिवारों के ज्यादातर सदस्य दूसरी जगह चले गए थे।

लोगों ने पलायन करने को नियम बना लिया है। वे जून-जुलाई में गांव लौटते हैं और इसके बाद फिर काम की अपनी जगहों पर लौट जाते हैं। उनके गांव आने की दो वजहें होती हैं। वे या तो किसी शादी में शामिल होने के लिए आते हैं या बारिश की उम्मीद में।

बिंद्रावन अभी एक हफ्ते पहले गांव से लौटे हैं। महोबा के खरेला थाना स्थित पाठा गांव के रहने वाले बिंद्रावन पूर्वी दिल्ली में रहते हैं, सीलमपुर के पास गोकुलपुरी के एक छोटे और संकरे-से दुमंजिले मकान की पहली मंजिल पर। उनकी पत्नी फिलहाल थोड़ी बीमार हैं, इसलिए वे थोड़े चिंतित दिख रहे हैं।

99.8% 64% वन खत्म हो चुके हैं। बारिश की कमी के पीछे यह बड़ा कारण है। बुंदेलखंड के सातों जिलों में 10 करोड़ पौधे लगाने की योजना सरकार चला रही है, पर इसकी सफलता पर संदेह जताया जा रहा है वे यहां पिछले 6 साल से हैं और दिल्ली नगर निगम के तहत राजमिस्त्री का काम करते हैं। इससे उन्हें रोज 225 रुपए मिलते हैं। उनकी पत्नी भी कभी-कभी काम करती हैं और उन्हें 140 रुपए मिल जाते हैं। दोनों मिला कर महीने में लगभग सात हजार रुपए कमा लेते हैं।

लेकिन उनके लिए इस आमदनी से ज्यादा महत्वपूर्ण उनके खर्च का ब्योरा है। वे इस रकम से 1,300 रुपए कमरे और बिजली के किराए के रूप में दे देते हैं। 1,000 रुपए अपने बच्चों की फीस और किताबों पर खर्च होते हैं। 3,000 रुपए हर महीने वे राशन पर खर्च करते हैं। 1,000 रुपए हर माह जेल में बंद उनके एक रिश्तेदार पर खर्च हो जाते हैं। अगर कोई बीमार नहीं पड़ा-जिसकी संभावना कम ही होती है- तो वे महीने में 700 रुपए बचा सकते हैं।

लेकिन यह आमदनी बहुत भरोसे की नहीं है। बारिश के दिनों में काम कई दिनों तक ठप रहता है। बिंद्रावन अपनी आय में कुछ और बचत कर सकते थे, अगर उन्हें राशन की सस्ते दर की दुकान से राशन मिलना संभव होता, दिल्ली में चलने पर गाड़ियों में कुछ कम पैसे देने होते, बीमारी के इलाज पर उन्हें हर महीने एक-दो हजार रुपए खर्च नहीं करने होते और सरकारी स्कूलों की स्थिति इतनी अच्छी होती कि उनमें भरोसे के साथ बच्चों कोे पढ़ाया जा सके। तब वे अपने पिता के सिर से कर्ज का बोझ उतारने में उनकी मदद कर सकते थे। बिंद्रावन ने 7 साल पहले जब गांव छोड़ा तो उनके पिता के ऊपर कर्ज था। उनके पिता पर आज भी कर्ज है, क्योंकि उन्हें अपने 6 बीघे खेतों से उम्मीद बची हुई है।

एक किसान आसानी से अपने खेतों से उम्मीद नहीं छोड़ता। तब भी नहीं जब दस साल से बारिश नहीं हो रही हो और लगातार कर्जे के जाल में फंसता जा रहा हो। लेकिन तब एेसा क्यों है कि उनका भरोसा चुकता जा रहा है?

सुंदरलाल का नाम उस सूची में 62वें स्थान पर है जिसे महोबा के एक किसान नेता और पचपहरा ग्राम के पूर्व प्रधान पृथ्वी सिंह ने 2008 में बनाना शुरू किया था। पिछले पांच सालों में अकेले इस जिले में 62 लोगों ने आत्महत्या की है। बांदा के एक सामाजिक कार्यकर्ता पुष्पेंद्र के अनुसार पूरे बुंदेलखंड के लिए यह संख्या 5,000 है। आत्महत्या करने वाले किसानों में सिर्फ भूमिहीन और छोटे किसान ही नहीं हैं, वे किसान भी हैं जिनकी आर्थिक स्थिति एक समय अच्छी थी और जिनके पास काफी जमीन भी थी। आत्महत्या करने की उनकी वजहों में सबसे ऊपर बैंकों का कर्ज चुका पाने में उनकी नाकामी है। पृथ्वी सिंह कहते हैं, ‘किसान यहां अकसर ट्रैक्टर या पंपिंग सेट के लिए कर्ज लेते हैं। लेकिन जमीन में पानी ही नहीं है,इसलिए प्रायः पंपिंग सेट काम नहीं करता। किसानों के घर में जब खाने को नहीं होता तब बैंक उन्हें अपना कर्ज लौटाने पर मजबूर करते हैं। मजबूरन कई जगह किसान उसे लौटाने के लिए साहूकारों से कर्ज लेते हैं और एक दूसरे तथा और बुरे जाल में फंस जा रहे हैं।’

बांदा जिले के खुरहंड गांव के इंद्रपाल तिवारी हालांकि उतने बड़े किसान भी नहीं हैं। उनके पास करीब 9 बीघा जमीन है। उन्हें ट्रैक्टर की कोई खास जरूरत नहीं थी, लेकिन एक ट्रैक्टर एजेंट के दबाव में आकर उन्होंने 2004 में अतर्रा स्थित भारतीय स्टेट बैंक से इसके लिए 2 लाख 88 हजार रुपए कर्ज लिए। फसलों से बीज तक न निकल पाने के कारण उनकी हालत वैसे भी खस्ता थी और ट्रैक्टर ने उनकी आय में कोई वृद्धि नहीं की थी, इसलिए वे उसकी किस्तें नहीं चुका पा रहे थे। आखिरकार 2006 में झांसी स्थित मेसर्स सहाय एसोसिएट्स के कुछ लोग तिवारी के पास आए और खुद को बैंक का आदमी बताकर उनका ट्रैक्टर छीन कर ले गए। इसके पहले बैंक ने उनसे 1 लाख 25 हजार रु की वसूली का नोटिस जारी किया था। ट्रैक्टर छीने जाने के बाद बैंक ने जब बकाया राशि की रिकवरी का आदेश जारी किया तो तिवारी ने कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से आरटीआई कानून के तहत बैंक से जानकारी मांगी। इसमें कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आए। बैंक ने रिकवरी एजेंसी सहाय एसोसिएट्स के जरिए ट्रैक्टर को तिवारी से लेकर 1 लाख 99 हजार रु में नीलाम कर दिया था।

दो साल बाद जब सरकार ने किसानों के लिए कर्ज माफी की घोषणा की तो बुंदेलखंड भी इसमें शामिल था। तिवारी ने इसके लिए आवेदन किया। कुछ ही दिनों बाद तिवारी भी उन सौभाग्यशाली किसानों की सूची में शामिल थे जिनके कर्ज ‘मानवीय चेहरेवाली केंद्र सरकार’ ने माफ किए थे। तिवारी के लिए भले न हो आपके लिए उस रकम के बारे में जानना महत्वपूर्ण हो सकता है। वह रकम थी 525 रुपए।

यह मजाक था। लेकिन तिवारी को इसे सहना पड़ा। उन्होंने अपने साथ हुए इस अपमानजनक व्यवहार के बारे में केंद्रीय कृषि मंत्रालय से लेकर प्रधानमंत्री तक को पत्र लिखा है। उन्हें हाल ही में कृषि मंत्रालय का जवाब भी मिला है जिसमें कहा गया है कि उनके मामले पर विचार किया जा रहा है।

पुष्पेंद्र कर्ज देने की इस पूरी प्रक्रिया को ही किसानों के लिए उत्पीड़क बताते हैं। उनका कहना है कि किसानों को सहायता के नाम पर ट्रैक्टर के लिए कर्ज थमा दिए जाते हैं जबकि अधिकतर किसानों को न तो ट्रैक्टर की जरूरत होती है न उन्होंने इसकी मांग की होती है। वे इसे बैंक और ट्रैक्टर एजेंसी के लाभों की संभावना से जोड़ते हैं। वे कहते हैं, ‘एक ट्रैक्टर के लिए दिए जाने वाले कर्ज पर बैंक मैनेजर 20 से 40 हजार रुपए, ट्रैक्टर एजेंसी के दलाल 10 से 20 हजार रुपए और ट्रैक्टर एजेंसी 40 से 60 हजार रुपए कमीशन लेते हैं। इस तरह किसान से 1 लाख रुपए तो कमीशन के रूप में ही ले लिए जाते हैं। इस तरह किसान को वह राशि तो अपनी जेब से चुकानी ही पड़ती है, उस पर सूद भी देना पड़ता है, जो उसे कभी मिली ही नहीं।’यह ऐसे होता है कि एजेंसी कर्ज की राशि में ट्रैक्टर के साथ हल-प्लाऊ जैसे अनेक उपकरण भी जोड़ लेती है, लेकिन उन्हें किसानों को दिया नहीं जाता। इसके अलावा कई बार बीमा और स्टांप के नाम पर भी किसानों से नकद राशि ली जाती है। अगर किसान के पास पैसे न हों तो उन्हें एजेंट नकद कर्ज भी देते हैं।

दूसरी कल्याणकारी योजनाओं की असलियत कर्ज माफी और संस्थागत ऋणों की इस कहानी से अलग नहीं है।
99.8% 75-80% आबादी गांवों से पलायन करती है। यह प्रायः जुलाई-अगस्त में शुरू होता है। इनमें भूमिहीन किसान भी हैं और जमीनवाले भी। इस दौरान गांवों में सिर्फ महिलाएं और वृद्ध रह जाते हैं नरेगा को ही लेते हैं। नरेगा की राष्ट्रीय वेबसाइट पर 2009-10 के लिए हमीरपुर जिले के भमई निवासी मूलचंद्र वर्मा के जॉब कार्ड (UP-41-021-006-001/158) के बारे में पता लगाएं। वेबसाइट बताती है कि 1 मई 2008 से 25 अप्रैल 2010 तक उनको 225 दिनों का काम मिल चुका है। लेकिन मूलचंद्र के कार्ड पर इस पूरी अवधि में सिर्फ 16 दिनों का काम चढ़ा है। हालांकि वे जो ज़बानी आंकड़े देते हैं उनसे साइट के आंकड़ों की कमोबेश पुष्टि हो जाती है। पुष्टि नहीं होती तो भुगतान की गई रकम की। मूलचंद्र का दावा है कि उन्होंने नरेगा के तहत 3 साल में 300 दिनों का काम किया है। उन्हें अब तक 18,300 रुपए का भुगतान किया गया है। वे अपने बाकी 11,300 रुपए के लिए पिछले तीन-चार महीनों से भाग-दौड़ कर रहे हैं। लेकिन यह नहीं मिली है। वे कहते हैं कि प्रधान और पंचायत सचिव उनसे नरेगा के तहत काम करवाते हैं लेकिन उसे जॉब कार्ड पर दर्ज नहीं करते, ‘2008 से लेकर अब तक मैंने 300 दिनों का काम किया है। लेकिन यह मेरे कार्ड पर दर्ज नहीं है। उन्होंने मेरे खाते में रकम जमा भी कराई है, लेकिन जो रकम बाकी है उसका भुगतान वे नहीं कर रहे हैं।’

वे प्रदेश की मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक का दरवाजा खटखटा चुके हैं। लेकिन अब तक उन्हें यह रकम नहीं मिल पाई है। पैसे के अभाव में वे अपनी बीमार बेटी का इलाज तक नहीं करा सके और वह मर गई। इसके उलट भमई की प्रधान उर्मिला देवी बताती हैं, ‘मूलचंद्र झूठ बोल रहे हैं। उन्हें पूरी रकम दी जा चुकी है।’ लेकिन तब भी जॉब कार्ड और उनके अपने आंकड़ों में इतना भारी अंतर बताता है कि कुछ गड़बड़ है। और यह गड़बड़ी ऐसी नहीं है कि इसे खोजना पड़े। यह सतह पर दिखती है। अधिकतर शिकायतें प्रधानों के रवैए को लेकर हैं। वे नरेगा की रकम को कर्ज के रूप में देते हैं और जॉब कार्ड पर काम कराकर उसे ब्याज समेत वसूलते हैं। प्रायः वे अपने नजदीकी लोगों को काम पर रखते हैं। अगर किसी तरह काम मिल जाए तो प्रायः 100 दिनों की गारंटी पूरी नहीं होती। ये सारी धांधलियां इस तरह की जाती हैं कि कोई भी उन्हें पकड़ सकता है। तहलका को उपलब्ध दस्तावेज दिखाते हैं कि साल में सौ दिन से अधिक काम दिए गए हैं और मर चुके लोगों के नाम पर भी भुगतान किए गए हैं।

महोबा जिला हाल के कुछ दिनों में नरेगा में भारी भ्रष्टाचार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाने लगा है। शायद यह अकेला जिला है जहां 52 प्रधानों से रिकवरी का ऑर्डर हुआ है। नरेगा के नियमों के तहत जितना खर्च होना चाहिए उससे 20 गुना अधिक खर्च की भी घटनाएं सामने आई हैं। जिले में मुख्य विकास अधिकारी समेत सात बड़े प्रशासनिक अधिकारी नरेगा में भ्रष्टाचार के आरोपों में निलंबित हुए हैं।

लेकिन महोबा के मौजूदा मुख्य विकास अधिकारी रवि कुमार के लिए यह बहुत परेशानी की बात नहीं है। वे कहते हैं, ‘भ्रष्टाचार तो ग्लोबल फिनोमेना है। इसका कोई ओर-छोर दिखाई नहीं देता। दरअसल, इसमें पंचायतों को इतना पैसा खर्च करने के लिए दे दिया जाता है कि वे समझ नहीं पातीं कि क्या करना है।’ वे चाहते हैं कि पंचायती राज के नियमों की समीक्षा की जाए, क्योंकि इससे अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे हैं।

सवाल कुछ और भी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों की पर्सपेक्टिव नाम की एक टीम अक्तूबर 2009 में बुंदेलखंड गई थी। इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली में प्रकाशित रिपोर्ट में टीम ने इसे रेखांकित किया है कि नरेगा जैसी योजना, जो सामान्य स्थितियों में गांव के एक सबसे वंचित हिस्से को राहत मुहैया कराने के लिए बनाई गई है, वह ऐसे संकट के समय सारी आबादी को संकट से नहीं उबार सकती।

और ऐसे में जब केंद्र सरकार ने सामरा रिपोर्ट में सिफारिश किए जाने के दो साल की देरी के बाद 7,277 करोड़ रुपए का पैकेज पिछले साल नवंबर में बुंदेलखंड को दिया है, जिसमें से 3,506 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के हिस्से आएंगे, तो उम्मीद से अधिक चिंताओं ने सिर उठाना शुरू कर दिया है। ये चिंताएं बड़ी राशि की प्रधानों और अधिकारियों द्वारा लूट से जुड़ी चिंताएं हैं, क्योंकि यह राशि भी उसी चैनल के जरिए और उन्हीं योजनाओं पर खर्च होनी है जिनकी कहानी अब तक हमने पढ़ी है।

ये चिंताएं कितनी वाजिब हैं, इनका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पैकेज मिलने के तीन महीने के भीतर मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड में11 योजनाएं पूरी कर ली गई हैं और पिछले छह महीने में 36 योजनाओं को पूरा किया गया है। पैकेज गांवों में रोजगार और काम पर कितना सकारात्मक असर डाल रहा है, इसके संकेत के तौर पर हम कुतुब (महाकौशल एक्सप्रेस) से दिल्ली लौटने वालों की भारी भीड़ के रूप में भी देख रहे हैं। योजनाएं तेजी से पूरी हो रही हैं, उस समय भी जब लोग गांवों में नहीं हैं। वे काम की अपनी पुरानी जगहों पर लौट रहे हैं।

इसीलिए रामकली को उम्मीद नहीं है कि यह पैकेज उनकी कोई मदद कर सकता है। वे कानपुर में ईंट भट्ठे पर अपने बेटे और बहू के पास जाने की सोच रही हैं।

सिराज केसर
TREE (ट्री), ब्लू-ग्रीन मीडिया
47 प्रताप नगर, इंडियन बैंक के पीछे
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भूगर्भ विधेयक के प्रारूप पर सुझाव हेतु अपील

Posted on 30 June 2010 by admin

लखनऊ - प्रदेश में भूगर्भ जल संरक्षण हेतु विधेयक के प्रारूप को प्रकाशित कर प्रबुद्ध नागरिकों समाजसेवियों एवं जन सामान्य से 5 जुलाई 2010 तक सुझाव मांगे गये थे। इस सम्बंध में अब तक 30 सुझाव प्राप्त हुए हैं जिन्हें वैज्ञानिकों, प्रेस प्रतिनिधियों, समाजसेवियों, स्वैच्छिक संगठनों तथा जनसामान्य ने भेजा है। यह जानकारी विशेष सचिव एवं निदेशक डॉ0 एस0के0पाण्डेय ने दी है। उन्होंने बताया कि सुझाव भेजने की अवधि को दो सप्ताह और आगे बढ़ाया जा रहा है।

डॉ0 पाण्डेय ने बताया कि ई-मेल के अलावा लोगों ने लिफाफे एवं पोस्टकार्ड पर भी अपने सुझाव दिये हैं। उन्होंने बताया कि विभागीय वेबसाइट http://gwd.up.nic.in पर विधेयक का प्रारूप अंग्रेजी तथा हिन्दी दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। उन्होंने जनसामान्य से अपील की है कि वह अपने सुझाव ई-मेल up.gwd@ rediffmail.com
या डाक द्वारा निदेशक भूगर्भजल नवम्तल इिन्दरा भवन, लखनऊ के पते पर भेंजे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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