Archive | स्वास्थ्य

निःशुल्क आयुर्वेदीय निदान एवं चिकित्सा शिविर

Posted on 07 December 2012 by admin

महोत्सव 2012 में स्टाल संख्या सी-160-162 में चल रहे निःशुल्क आयुर्वेदीय निदान एवं चिकित्सा शिविर में आज भी रोगियों की भीड़ उमड़ी। यह शिविर आयुर्वेद विभाग द्वारा आयोजित किया गया है। जिसमें रोगियों को निःशुल्क परामर्श दिया जा रहा है तथा आयुर्वेदिक औषधियाॅ भी निःशुल्क वितरित की जा रही है। प्रदेश में आयुर्वेद चिकित्सा के प्रचार-प्रसार हेतु इस शिविर में क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी लखनऊ एवं राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय लखनऊ के योग्य चिकित्सकों की एक टीम लगायी गयी है जिसमें राजभवन चिकित्सालय के राजवैद्य डा0 शिव शंकर त्रिपाठी, नटकुर के डा0 एस0के0 गुप्ता, गोसाईगंज के डा0 बृजेश कुमार, शाहमऊ की डा0 अनुभूति तथा आयुर्वेदिक कालेज के डा0 पी0के0 श्रीवास्तव एवं डा0 कमल सचदेवा आदि प्रमुख है।
नाड़ी विशेषज्ञ राजवैद्य डा0 शिव शंकर त्रिपाठी ने बताया कि खानपान की गड़बड़ी, अनियमित जीवन शैली तथा चिन्ता एवं क्रोध के अधिक करने के कारण हृदय रोगियों की संख्या में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है। उन्होंने बताया कि अर्जुन की छाल का काढ़ा दूध के साथ बनाकर यदि प्रतिदिन खाली पेट पिया जाये तो हृदय रोगों से बचे रह सकते हैं तथा इसके नियमित सेवन से धमनी अवरोध दूर होकर बाईपास सर्जरी तक टल जाती है। उन्होंने कहा कि कोलेस्ट्राल को कम करने के लिये जरूरी है कि वसायुक्त भोजन कम करें, नियमित व्यायाम करें तथा रात्रि को जल्दी सोयें और सूर्योदय के पूर्व जगकर कम से कम तीन कि0मी0 भ्रमण करें। किन्तु ध्यान रहे कि अधिक ठंड के समय हृदय रोगियों को प्रातः भ्रमण से बचना चाहिये। पंचकर्म विशेषज्ञ डा0 एस0के0 गुप्ता ने बताया कि कटिशूल (कमर के दर्द) में दशमूल क्वाथ से कटिस्वेद कराने एवं सिंहनांद गुगुल के सेवन से शीघ्र आराम मिलता है। उन्होंने बताया कि साइनोसाइटिस के रोगियों को षड्बिन्दु तेल का नस्य कराने से स्थाई लाभ मिलता है। डा0 श्रीमती अनुभूति ने बताया कि शरीर में खून की कमी को दूर करने के लिये मौसमी फल तथा एक मुठ्ठी अंकुरित चने का सेवन तथा खाने के बाद गुड़ का लेना लाभकारी है। डा0 बृजेश कुमार ने बताया कि यकृत के रोगों में पुनर्नवा की जड़ का सेवन एवं मकोय के पत्ते का साग लेना अत्यन्त मुफीद है। आयुर्वेद महाविद्यालय के चिकित्साधिकारी डा0 पी0के0 श्रीवास्तव ने बताया कि अर्श (पाइल्स) के रोगियों को कब्ज को दूर रखना चाहिए उसके लिये पंचसकार चूर्ण का सेवन रात में गुनगुने पानी से करना चाहिए तथा अर्शोघ्नी वटी एक गोली का प्रातः सांय सेवन करना लाभकारी होता है। डा0 कमल सचदेवा ने बताया कि अम्लपित के रोगियों को उपवास से बचना चाहिए तथा अम्लता को कम करने के लिये अविपत्तिकर चूर्ण एक चम्मच रोज लेना हितकर रहता है।
जनसामान्य की स्वास्थ्य रक्षा हेतु तथा आयुर्वेद मंे वर्णित सद्ाचरण एवं आहार-विहार के बारे में जानकारी हेतु ‘‘आयुर्वेद और स्वास्थ्य’’ तथा ‘‘आयुर्वेदोऽमृतानाम्’’ नामक दो पत्रकों का निःशुल्क वितरण भी इस स्टाल द्वारा किया जा रहा है। क्षेत्रीय आयुर्वेदिक/यूनानी अधिकारी, लखनऊ, डा0 अरूणेश चन्द्र त्रिपाठी ने आह्वान किया कि आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, टी0वी0 एवं इण्टरनेट में दिये गये विज्ञापनों के माध्यम से करना स्वास्थ्य के लिये हानिकर है। अतएव किसी भी स्थिति में साध्य व असाध्य रोगों की चिकित्सा भ्रामक विज्ञापनों को पढ़कर न करें और किसी योग्य आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह पर ही आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करें।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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बच्चों के स्वास्थ्य पर डायरिया का कुप्रभाव घटाना और उनकी उत्तरजीविता बढ़ाना ही एमआई का लक्ष्य है

Posted on 06 December 2012 by admin

दि माइक्रोन्यूट्रिएंट इनीशिएटिव अंतर्राष्ट्रीय स्वंसेवी संगठन प्रदेश में राज्य डायरिया, तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बच्चों की होने वाली मौतों की रोकथाम के लिए राज्य सरकार से मिलकर कार्य कर रहा है।एमआई ने बच्चों में डायरिया उपचार की बेहतर सुविधाएं प्रदान किया जाना सुनिश्चित करने की दिशा में अपने प्रयास बढ़ाने के लिए, बेल्जियम स्थित वैश्विक मैटीरियल टेक्नोलाॅजी गु्रप यूमिकोर से साझेदारी कायम की है। इस साझेदारी के तहत यूमिकोर, जिंक तथा ओआरएस उपचार किटें उपलब्ध कराएंगे जिससे एमआई को उत्तर प्रदेश में 120,000 बच्चों तक पहुचाने की क्षमता मिल जायेगी।
प्रदेश में एमआई मुख्यतः दो क्षेत्रों में कार्य करता है। विटामिन ए सप्लिमेंटेशन, जो बच्चों की जीवित रहने की संभावना में उल्लेखनीय वृद्धि करता है तथा बच्चों में डायरिया के उपचार हेतु ओआरएस के साथ जिंक सप्लिमेंटेशन। उत्तर प्रदेश में बच्चों के स्वास्थ्य पर डायरिया का कुप्रभाव घटाना और उनकी उत्तरजीविता बढ़ाना ही एमआई का लक्ष्य है। संस्था के गे बेक, सीनियर वाॅइस प्रेसिडेंट, यूमिकोर ने कहा कि अपने वैश्विक धारणीयता उद्देश्यों के अंग के रूप में यमिकोर बच्चों की शिक्षा और कल्याण पर खासतौर से फोक्स करते हुए अनेक प्रासंगिक महत्वपूर्ण कार्यो में सहयोग करते है। एमआई के इस कार्यक्र ने हमें प्रभावित किया है जिनका ध्येय उत्तर प्रदेश मंे बच्चों को बेहतर जीवन प्रदान करना है तथा राज्य में डायरिया के कारण बच्चों की मौतों रोकथाम करने और उनमें पोषक तत्वों की कमियां दूर करने में मदद के लिए हमने उनके साथ साझेदारी करने का निश्चय किया ।
सुश्री मेलानी गेल्विन, रीजनल डाॅयरेक्टर फाॅर एशिया माइक्रोन्यूट्रिएंट इनीशिएटिव ने कहा कि डायरिया का समय पर तथा आसानी से उपचार सुलभ कराना एमआई का ध्येय है तथा इस महान कार्य की दिशा में हम बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश मंे अनेक कार्यक्रम कार्यान्वित कर रहे है। सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचरियों की क्षमता निर्माण करना तथा ग्रासरूट लेवल पर डायरिया आधारित रोगांे का प्रबंधन बेहतर करना हमारे ध्येय में शामिल है। डा0 वेद प्रकाश जनरल मैनेजर एडमिन एण्ड आर.आई नेशनल रूरल हेल्थ मिशन उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि राज्य में पांच वर्ष से छोटे बच्चों की मरणशीलता घटाने के लिए सभी उपयोगी हस्तक्षेप कार्यक्रमों को सपोर्ट करने कें लिए उत्तर प्रदेश सरकार कृतसंकल्प है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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इम्प्लान्ट अत्यधिक सफल रहे हैं

Posted on 15 October 2012 by admin

dscn0686इम्प्लान्ट भारत में 90 के दशक में शुरू किये गए थे जिसमें कि अब तक काॅफी पदोन्नति कर ली है। इम्प्लान्ट अत्यधिक सफल रहे हैं और लापता दाँत Missing Tooth  की अचल प्रतिस्थापन  Fixed Replacement के लिए अपेक्षाकृत सबसे अच्छा विकल्प है।
भगवान ने दो दाँतों के सेट को बनाया और दन्त चिकित्सकों के द्वारा बनाये गये अचल Fixed दाँतों के सेट को डेण्टल इम्प्लान्ट कहते है।
दन्त चिकित्सकों का एक समूह, जिसमें डाॅ. इकबाल अली, डाॅ. पुनीत वाधवानी, डाॅ. सौरभ चतुर्वेदी, डाॅ. सुबोध नाटू के साथ मिल कर डाॅ. टी.वी. नारायण (प्रसिद्ध इम्प्लाॅन्टोलोजिस्ट) एक वर्कशाप की शुरूआत की और एक इम्प्लान्ट की लाइव सर्जरी दिखाई।
इस कार्यशाला की विशेषता यह है कि इसमें कम खर्च में (3 माॅड्यूल्स, 9 दिन) वर्कशाप हो रही है। आयोजकों की टीम में डाॅ. उत्सव श्रीवास्तव, डाॅ. सौम्या सिंह, डाॅ. मोनिका निशाल हैं जिनका महत्वपूर्ण योगदान है। इस कार्यशाला में 40 प्रतियोगी दन्त चिकित्सकों, परास्नातक दन्त चिकित्सकों और स्नातक दन्त चिकित्सकों ने मिल कर भाग लिया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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Media will Play a Key Role in Boosting Routine Immunization Coverage in Uttar Pradesh

Posted on 03 May 2012 by admin

Health and Family Welfare Department and UNICEF to launch a state-wide media training initiative that will cover 15 low performing districts

All newborns in the state of Uttar Pradesh can now hope to live a long and healthy life as awareness around the issue of Routine  Immunization (RI) gains ground and coverage improves markedly. For long, indicators have continued to be low in the state of Uttar Pradesh, with only 40.9% children (12-23 months) being fully immunized, compared to the national average of 61% (CES, 2009).

However, this scenario is set to change. To support the Government of Uttar Pradesh in RI implementation and to increase immunization coverage, UNICEF is holding a State Media Consultation on “Media’s Role in Supporting Routine Immunization in Uttar Pradesh” on 4th May, 2012. Well known media person and Chairperson of Prasar Bharti, Dr. Mrinal Pande will interact with key media persons and government health officials to identify ways of strengthening RI coverage in the state.

The state consultation will pave the way for consultations in 15 districts of the state, namely, Agra, Bahraich, Balrampur, Chitrakoot, Farrukhabad, Kaushambi, Kushinagar, Lakhimpur Kheri,  Lalitpur, Maharajganj, Pilibhit, Shravasti, Siddhartha Nagar, Sitapur  and Sonbhadra, where the uptake of RI services is low.

The media training initiative is being guided by the findings of a special media tracking exercise that was undertaken from May, 2011 to November, 2011 covering 10 print media publications and five electronic media. The findings highlighted that apart from programme implementation and strengthening of systemic issues within the public health system, there was an urgent need to create larger advocacy around the subject – including within the media, given the widespread gaps in understanding, perceptions, behaviours and attitudes, leading to low uptake of services.

So far, national and vernacular coverage of RI in Uttar Pradesh had been limited largely to state announcements, spot coverage of events and responses of the general public around immunization schedules. There had been sufficient misreporting, bordering on sensationalism and exaggeration which contributed in misinforming the public, forcing the government to respond in ways that could slow down the immunization process and create a demotivating environment for outreach/ health workers and district level functionaries.

The media tracking effort pointed out that nearly 83 per cent of RI reports during the tracking period had a negative tone to them. It also indicated that lack of accurate information on RI on the part of journalists, led to most stories being based on spot coverage and to only the victims’ angle being covered which was not always balanced. It also pointed out that government interface with media happened only when an adverse event following immunisation (AEFI) occurred, which further fuelled negative perceptions.

A rapid needs assessment was also carried out with journalists, health reporters, editors and channel heads to understand their views on RI. The majority of those interviewed agreed that they had not given RI due importance because this was not considered a critical news subject. They admitted the need for more information and training on the subject, to ensure increase in coverage, to the extent that people were informed in time and could avail of services and ensure healthy disease-free families.

Recognizing these gaps, the Health and Family Welfare in Government of Uttar Pradesh and UNICEF decided to launch a state-wide media training initiative that could inform media on RI and simultaneously help them establish a stronger working relationship with government, health department, communities and agencies such as UNICEF. This dedicated exercise will build capacities of media persons and bridge the gap by creating strong Health Ambassadors amongst key journalists, reporters, editors and feature writers.

Adele Khudr, Chief of UNICEF State Office for Uttar Pradesh said, “UNICEF believes that Media plays a critical role in spreading awareness, influencing public and policy-makers’ opinions, and managing crisis through public discourse. The state and district level consultations that will be organized in Uttar Pradesh in partnership with the Health and Family Welfare department will help create a pool of informed journalists who will work in tandem with government health departments and communities to ensure regular, sustained and accurate coverage on RI related issues.”

About UNICEF: UNICEF works to bring life, joy and dignity to the children of this country. It supports various programmes of the State Government, including Routine Immunization (RI) with the objective of reaching children across the state.

For details please contact:

Atul Kumar, UNICEF
Communication Specialist
Tel: 0522-409 3333 Extension 213
E-mail: [email protected]

Dr Sanjay Bhardwaj, UNICEF
Health Officer
Tel: 0522-409 3333 Extension 119
E-mail: [email protected]

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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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छात्रों से परीक्षा का भय निकाल देती हैं होम्योपैथिक औषधियां

Posted on 02 March 2012 by admin

और हर साल की तरह फिर आ गया परीक्षा का मौसम। हर तरफ परीक्षा का ही शोर है। अभिभावक परेशान है कि उनके बच्चों को कैसे अच्छे अंक मिले और छात्र परेशान हैं कि वह कैसे अच्छे अंक लाकर अपने माता पिता के लाडले बने रहें। परीक्षा का मौसम कभी-कभी छात्रों के लिए अनेक परेशानियां लेकर आता है। परीक्षा के डर से होने वाली परेशानियो को चिकित्सीय भाषा मे एक्ज़ाम फीवर या फोबिया कहते है। इससे बच्चो मे अनेक परेशानियां उत्पन्न हो सकती है जैसे, बच्चों का मन पढ़ाई के दौरान एकाग्र नही हो पाता है। परीक्षा कक्ष काल कोठरी जैसा लगता है उसमे प्रवेश से पहले अजीब सी बेचैनी, घबराहट एवं सिहरन होने लगती है, बार बार पेशाब व दस्त की शिकायत हो जाती है, याद किया हुआ भूल जाता है, बार बार आत्महत्या का विचार आता है, नींद उड़ जाती है, फेल हो जाने का भय सताता है। छात्रों की इन तमाम परेशानियों को दूर करने की ताकत होम्योपैथी की मीठी-मीठी गोलियों मे है।
यह कहना है केन्द्रीय होम्योपैथिक परिषद के सदस्य एवं होम्योपैथिक चिकित्सक डा0 अनुरुद्ध वर्मा का। उनका कहना है कि एक्ज़ाम फीवर एक मानसिक परेशानी है इससे लगभग 30 से 40 प्रतिशत छात्र प्रभावित होते है। परीक्षा मे अच्छे अंको से पास होने का दबाव इसकी सबसे बडी वजह है, ज्यादातर यह दबाव अभिभावकों द्वारा बनाया जाता है जिसके कारण बच्चे परीक्षा के दौरान एक कमरे मे कैद हो कर रह जाते है। परीक्षा के दैरान खाने-पीने का रुटीन बदल जाता है। उन्होने कहा कि यह स्थिति ठीक नही है, परीक्षा के दौरान बच्चों को कमरे मे कैद होने के बजाए, पढ़ाई के साथ-साथ थोड़ा घूमना, फिरना तथा मनोरंजन भी जरुरी है। डा0 वर्मा का कहना है कि अभिभावक बच्चों के धैर्य को बनाए रखने मे उनकी सहायता करें। उनका कहना है कि छात्रों को किसी भी परीक्षा से डरने की जरुरत नही है क्यो कि कई बार उचित सलाह के बाद भी कई छात्र इन परेशानियों से नही बच पाते है।
उन्होने बताया कि होम्योपैथी मे परीक्षा के दौरान होने वाली परेशानियों से निजात दिलाने की अनेक कारगर औषधियां उपलब्ध है सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनका शरीर पर कोई कुप्रभाव भी नही पडता है। डा0 वर्मा ने बताया कि यदि परीक्षा मे जाते समय डर लगे तो लाइकोपोडियम एवं साइलीसिया का प्रयोग किया जा सकता है। यदि परीक्षा के समय सिरदर्द, बार-बार पेशाब लगने, दस्त एवं घबराहट की शिकायत हो तो जेल्सीमियम एवं अर्जेन्ट्रम नाइट्रिकम का प्रयोग लाभदायक हो सकता है।
उन्होने बताया कि परीक्षा की तारीख पास आने पर ज्यादातर बच्चो मे अनिद्रा की शिकायत हो जाती है इन बच्चों के लिए नक्स वोमिका फायदेमंद होती है। परीक्षा की पूरी तैयारी के बाद भी लगे कि कुछ याद नही है तो एनाकाडिंयम एवं कालीफांस का प्रयोग किया जा सकता है। उन्होने कहा कि कुछ छात्र परीक्षा के दौरान ज्यादा तैयारी के लिए नींद न आने वाली दवाइयां ले लेते है जो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नही है। डा0 वर्मा ने कहा कि सिर पर सवार परीक्षा ने छात्रों के लिए होली का रंग फीका कर दिया है, उन्होने सलाह दी कि होली के दौरान छात्रों को रंग खेलने से परहेज करना चाहिए क्यो कि यदि रंग आॅख मे पड गया तो आॅख मे दर्द एवं जलन हो सकती है जो छात्र की परीक्षा मे व्यवधान उत्पन्न कर सकती है।
उन्होने छात्रों को होली मे तली-भूनी चीजे न खाने की सलाह दी है क्यो कि इससे आलस्य आता है तथा पेट खराब होने का डर बना रहता है। डा0 वर्मा ने अभिभावको को अपने बच्चों पर ज्यादा दबाव न बनाने की सलाह दी है क्यो कि इससे बच्चे तनाव मे आ जाते है जिससे उन्हे परीक्षा के दौरान अनेक परेशानियो का सामना करना पडता है। उन्होने छात्रों से कहा कि परीक्षा से डरने की जरुरत नही है पूरी मेहनत और लगन के साथ खेल भावना से परीक्षा देना चाहिए।
उन्होने कहा कि होम्योपैथी की दवाईयां आप के दिमाग से परीक्षा का भूत निकाल देगी तथा परीक्षा के सफर मे आप का पूरा साथ निभा कर आप को सफलता दिलाने मे आप का सहयोग करेंगी। परन्तु ध्यान रहे कि होम्यापैथिक दवाईयां केवल प्रशिक्षित चिकित्सकों की सलाह से ही लेनी चाहिए। साथ ही बोर्ड परीक्षार्थियों की सहायता के लिए बनाये गये कंट्रोल रुम के नम्बर 9415075558 पर भी निः शुल्क सलाह ली जा सकती है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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बच्चों का डिपे्रशन में जाने का मुख्य कारण है तनाव - अंशुमालि शर्मा

Posted on 27 March 2010 by admin

लखनऊ - बच्चों में दिनोदिन तनाव बढ़ने से आत्महत्याओं की घटनाओं में निरन्तर वृद्वि हो रही है और इसके लिए बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावक और अध्यापकगण भी कम दोषी नहीं है। अभिभावकों और अध्यापकों को बच्चों की क्षमताओं का आंकलन करके उनकी रुचि के अनुसार प्रेरित करना चाहिए। बच्चों पर अपनी इच्छाओं को थोपना नहीं चाहिए क्योंकि बच्चों का मन थोपी हुई बातों को करने में नहीं लगता हैं लेकिन आज के समय में नम्बर वन बनने की होड़ ने सभी बच्चों को तनावग्रस्त कर रखा है। हर माता-पिता चाहते है कि उनका बच्चा नामी-गिरामी स्कूल में शिक्षा ग्रहण करके डाक्टर, इंजीनियर और आईएसए बने और वे नम्बर वन की दौड़ में अपने बच्चे को दौड़ाकर डिप्रेशन में डालने का काम करते है।

यूनीसेफ और मीडिया नेस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आज यहां यू0पी0 प्रेस क्लब में चिल्ड्रन ऑवर में महात्वाकांक्षा बन गई है जानलेवा विषय पर बोलते हुए ऑल इज वेल फोरम से जुडे चाइल्ड लाइन संस्था के निदेशक डा0 अंशुमालि शर्मा ने कहा कि बच्चों का डिपे्रशन में जाने का मुख्य कारण है तनाव और उनको यह तनाव देते है उनके माता-पिता, अभिभावक और अध्यापक। उन्होंने बताया कि डिप्रेशन (अवसाद) के मुख्यता: चार लक्षण होते हे:- बच्चा नज़र मिला कर आपसे बात न कर रहा हो, बच्चा अधिकतर अकेले बैठने की कोशिश में हो, छोटी-छोटी बातों में झुझला जाएं और कभी-कभी हिंसक हो जाएं। माता-पिता और अध्यापकों को बच्चों पर किसी तरह का दबाव नहीं डालना चाहिए। डिप्रेशन से बचने के लिए बच्चों को परीक्षा को हौव्वा नही समझना चाहिए, कम से कम छह घन्टे नीन्द ले, इम्तिहान के दिनों में हल्का-फुल्का भोजल करें, अभिभावक बच्चों पर दबाव न बनाकर उनकी समस्याओं को सुनकर उनका निदान करें और संवादहीनता न होने दें।

डा0 अंशुमालि शर्मा ने बताया कि ऑल इज वेल फोरम ने सैकडों बच्चों को आत्महत्या से रोकने का काम किया है। उनका कहना है कि कोई भी बच्चा अपनी समस्याओं को फोरम के नि:शुल्क फोन नम्बर 1098 अथवा 9415189200 अथवा 9415408590 पर चौबीसो घन्टे बातचीत करके सुलझा सकता है।

डा0 विनोद चन्द्रा ने बताया कि उनका फोरम बच्चों को स्वास्थ्य, आश्रय, परामर्श, परिवार वापसी और शोषण से बचाव की सेवा प्रदान करता है। उनका मानना है कि अभिभावक, अध्यापक और छात्रों में संवाद शून्यता है और उसको दूर करने के लिए काउसिंलिंग की जरुरत है।

इस अवसर पर मीडिया नेस्ट की महामन्त्री और वरिष्ठ पत्रकार कुलसुम तल्हा ने कहा कि  पहले हम भारतीय है बाद में पत्रकार। हम मीडिया के लोग बच्चों की समस्याओं को उजागर करके उसका समाधान निकालने में अहम भुमिका निभाते है। उन्होंने कहा कि चिल्ड्रन ऑवर अपनी तरह का एक निराला कार्यक्रम है जिसको यूनीसेफ के सहयोग से एक विख्यात पत्रकार संगठन मीडिया नेस्ट आयोजित करता है जिसमें बच्चों और महिलाओं के उत्थान के लिये काम किया जाता है। इस कार्यक्रम में बच्चों और महिलाओं की समस्याओं को उठाया जाता है और उसके समाधान के उपाय खोजे जाते है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
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रक्तदान का महत्व जीवनदान से कम नहीं

Posted on 12 March 2010 by admin

सागर (मध्य प्रदेश)-जिला एड्स नियंत्रण समिति एवं ब्लड बैंक द्वारा आयोजित स्वैच्छिक रक्तदाता प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण कार्यशाला को संबोधित करते हुए शहडोल से आईं पैथालॉजिस्ट डॉ.सुधा नामदेव ने कहा कि रक्तदान का महत्व जीवनदान से कम नहीं है। एक वर्ष में अगर सभी व्यक्ति एक बार भी रक्तदान करें तो खून की कमी के कारण होने वाली कई मौतें रोकी जा सकती हैं।

सिविल लाइंस में जिला एड्स नियंत्रण समिति एवं ब्लड बैंक द्वारा आयोजित स्वैच्छिक रक्तदाता प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण कार्यशाला मे डॉ. नामदेव ने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में रक्तदान को लेकर भ्रांतियों का निवारण किया। उन्होंने कहा कि रक्तदान करने से कभी शरीर में खून की कमी नहीं होती है और न ही इसके दोबारा बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

कार्यशाला का आयोजन रक्तदान प्रेरकों को प्रशिक्षिण व सम्मान करने के लिए किया गया था। कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक डॉ. केके ताम्रकार, बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. शरदचंद्र तिवारी एवं सीएमएचओ डॉ. प्रमोद गोदरे ने रक्तदान प्रेरकों के कार्य को सराहा। उन्होंने कहा कि वह स्वास्थ्य के क्षेत्र में बिना किसी स्वार्थ के एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं।

म.प्र. राज्य एड्स नियंत्रण समिति की मोनल सिंह ने भी रक्तदान के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलाई जा रहीं विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी। कार्यक्रम के दूसरे चरण में स्वास्थ्य विभाग ने रक्तदान प्रेरकों को मैडल एवं प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया। कार्यक्रम में डॉ. एसएम सिरोठिया, डॉ. पदमा आचार्य डॉ. संजीव मुखारया, डॉ. आलोक सहाय, डॉ. वंदना गुप्ता, राजेश पंडित मौजूद थे। कार्यक्रम का समन्वयन ब्लड बैंक काउंसलर प्रीति जैन ने व संचालन अखिल जैन ने किया। आभार डॉ. आरके दीक्षित माना।

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विश्व ग्लोकोमा सप्ताह शुरू

Posted on 09 March 2010 by admin

चित्रकूट - सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट द्वारा संचालित नेत्र चिकित्सालय में 7 मार्च से 13 मार्च तक विश्व ग्लोकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है। जिसके तहत चिकित्सालय के अलावा गांव-गांव जाकर नेत्र चिकित्सक इसके रोगियों की जांच करेंगे और इलाज के लिए उचित मार्गदर्शन देंगे।

ग्लोकोमा विशेषज्ञ डा. रवि चान्दिल ने बताया कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले ग्लोकोमा मरीजों का ट्रस्ट द्वारा नि:शुल्क इलाज किया जाएगा। डा. चान्दिल ने बताया कि विश्व ग्लोकोमा जिसे ग्रामीण भाषा में समलवायु कहा जाता है आंखों का एक चोर रोग है। इस रोग से ग्रसित मरीजों को बल्ब के आगे देखने पर सतरंगी रोशनी दिखाई देती है। और अंधेरे से उजाले में आने पर भी दिक्कत होती है। इसके अलावा यह आंख की ऐसी बीमारी है जिसके कारण आंख की रोशनी धीरे-धीरे चली जाती है और फिर वापस नहीं आती है। आंख में जरा सी तकलीफ होने पर तुरन्त विशेषज्ञ से अपनी आंखों की जांच करानी चाहिए। डा. चान्दिल ने क्षेत्र के लोगों से अपील की है कि अपने आस-पास ऐसे रोगियों की जानकारी होने पर उन्हें नेत्र चिकित्सालय जाने के लिए प्रेरित करें। उन्होंने कहा कि सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय की टेली आप्थलमालॉजी बस भी ग्रामीण इलाकों में जाकर रोगियों की जांच करेगी। उन्होंने इसका लाभ उठाने की अपील की है।

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देश में 269 नर्सिंग स्कूल खुलेंगे

Posted on 05 March 2010 by admin

नई दिल्ली - केन्द्र सरकार देश में नर्सिंग सेवा को मजबूत करने के लिए 269 नर्सिंग स्कूल खोलेगी।  इस पर 2030 करोड़ रुपये खर्च आएगा। कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्रालय के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को स्वीकृति दे दी। कैबिनेट के फैसले के तहत नर्सिंग स्कूलों पर आने वाले खर्च में 85 फीसदी सहायता केन्द्र सरकार करेगी जबकि राज्य सरकार मात्र 15 फीसदी खर्च करेगी। सरकार ने नर्स बनने के लिए अविवाहित होने की बाध्यता भी समाप्त कर दी है। अब विवाहित महिलाएं भी नर्सिंग पाठ्क्रमों में प्रवेश की हकदार हो गई हैं। नर्सिंग कोर्स में प्रवेश के लिए पांच फीसदी अंकों की कमी भी की जा रही है। आंकड़ों के अनुसार देश में इस समय 1248 मरीज पर एक नर्स उपलब्ध है जबकि विकसित देशों में तीन मरीज पर एक नर्स है।

विदेश से मिलने वाले चन्दे पर अब केन्द्र सरकार पैनी नज़र रख सकेगी। कैबिनेट ने विदेशी अंशदान (नियामकद्ध कानून में संशोधन के प्रस्ताव को हरी झण्डी दिखा दी है। इस संशोधन के बाद विधेयक को बजट सत्र में पारित करने की तैयारी है। केन्द्र विदेश से मिले धन का आतंकी वारदातों के लिए इस्तेमाल रोकने के लिए इस कानून को और कड़ा बनाने जा रही है। हालांकि सरकार पर यह आरोप लगता रहा है कि वह एनजीओ पर नज़र रखने के लिए आतंकी वारदातों का बहाना बना रही है।

कैबिनेट ने नकली और घटिया बीजों के कारोबार को रोकने के लिए बीज बिल 2004 को मंजूरी दे दे। इसके तहत किसानों को उम्दा किस्म के बीज उपलब्ध कराने के साथ ही निजी क्षेत्र को बीज उत्पादन, वितरण और प्रमाणीकरण की व्यवस्था की गई है। बीज बिल 2004 को सरकार जल्द ही संसद में पेश करेगी जहां मंजूरी के बाद यह बीज बिल 1966 की जगह ले लेगा।

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आयुर्वेद चिकित्सा के लिए फंड बढ़ाने की मांग

Posted on 24 February 2010 by admin

नई दिल्ली  - लावण्य आयुर्वेदिक संस्थान के अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव ने स्वास्थ्य बजट में आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी,सिद्ध और होम्योपैथ चिकित्सा) के लिए बहुत कम धन आवंटित किए जाने की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है कि स्वास्थ्य बजट का केवल दो से तीन प्रतिशत ही आयुष के लिए आवंटित होता है जबकि इसे बढ़ा कर पचास प्रतिशत किए जाने की आवश्यकता है। श्रीवास्तव ने कहा कि एलोपैथी डॉक्टर गांवों में जाना पसंद नहीं करते और आयुर्वेद के डॉक्टर ही गांवों की सेवा करते हैं। यदि आयुर्वेद के डॉक्टरों को अतिरिक्त प्रशिक्षण देकर गांववालों के स्वास्थ्य की देखभाल की जिम्मेदारी दी जाए तो सरकार का अच्छे स्वास्थ्य का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। सही मद में धन को खर्च करने के लिए नियमों को सरल किया जाना जरूरी है।

इंडियन मेडिकल असोसिएशन के महासचिव डॉ. धर्म प्रकाश का मानना है कि देश में सबके लिए अच्छा स्वास्थ्य का लक्ष्य पाने के लिए सरकार को हेल्थ सेक्टर में पिछले साल रखी गई बजट राशि को बढ़ाकर कम से कम दस गुना करना चाहिए। सरकार देश में एम्स जैसी छह संस्थाएं बनाना चाहती है। गांवों में डॉक्टरों को भेजने के लिए विशेष प्रोत्साहन पैकेज देने की जरूरत होगी। नए मेडिकल कॉलेज खोलने और मौजूदा मेडिकल कॉलेजों के अपग्रेडेशन के लिए भी अधिक धन की जरूरत रहेगी। सरकार को प्राइमरी हेल्थ केयर पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

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