Archive | विज्ञान

ऑक्सीजन के बिना जीने वाले जीव

Posted on 02 July 2010 by admin

वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे जीवों की खोज की है जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हैं और प्रजनन कर सकते हैं। ये जीव भूमध्यसागर के तल पर मिले हैं। इटली के मार्श पॉलीटेकनिक विश्वविद्यालय में कार्यरत रॉबर्तो दोनोवारो और उनके दल ने इन कवचधारी जीवों की तीन नई प्रजातियों की खोज की है। दोनोवारो ने बीबीसी को बताया कि इन जीवों का आकार करीब एक मिलीमीटर है और ये देखने में कवच युक्त जेलीफ़िश जैसे लगते हैं। प्रोफेसर रॉबर्तो दोनोवारो ने कहा, ये गूढ़ रहस्य ही है कि ये जीव बिना ऑक्सीजन के कैसे जी रहे हैं क्योंकि अब तक हम यही जानते थे कि केवल बैक्टीरिया ऑक्सीजन के बिना जी सकते हैं। भूमध्यसागर की ला अटलांटा घाटी की तलछट में जीवों की खोज करने के लिए पिछले एक दशक में तीन समुद्री अभियान हुए हैं। इसी दौरान इन नन्हे कवचधारी जीवों की खोज हुई।यह घाटी क्रीट द्वीप के पश्चिमी तट से करीब 200 किलोमीटर दूर भूमध्यसागर के भीतर साढ़े तीन किलोमीटर की गहराई में हैए जहां ऑक्सीजन बिल्कुल नहीं है।

नए जीवों के अण्डे प्रोफेसर दानोवारो ने बीबीसी को बताया कि इससे पहले भी बिना ऑक्सीजन वाले क्षेत्र से निकाले गए तलछट में बहुकोशिकीय जीव मिले हैं लेकिन तब ये माना गया कि ये उन जीवों के अवशेष हैं जो पास के ऑक्सीजन युक्त क्षेत्र से वहां आकर डूब गए। प्रोफ़ैसर दानोवारो ने कहा हमारे दल ने ला अटलांटा में तीन जीवित प्रजातियां पाईं जिनमें से दो के भीतर अण्डे भी थे। हलांकि इन्हें जीवित बाहर लाना सम्भव नहीं था लेकिन टीम ने जहाज पर ऑक्सीजन रहित परिस्थितियां तैयार करके अण्डो को सेने की प्रक्रिया पूरी की। उल्लेखनीय है कि इस ऑक्सीजन रहित वातावरण में इन अण्डों से जीव भी निकले। दानोवारो ने कहा यह खोज इस बात का प्रमाण है कि जीव में अपने पर्यावरण के साथ समायोजन करने की असीम क्षमता होती है। उन्होंने कहा कि दुनिया भर के समुद्रों में मृत क्षेत्र फैलते जा रहे हैं जहां भारी मात्रा में नमक है और ऑक्सीजन नहीं है। स्क्रिप्स इंस्टिट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी की लीसा लेविन कहती हैंए अभी तक किसी ने ऐसे जीव नहीं खोजे जो बिना ऑक्सीजन के जी सकते हों और प्रजनन कर सकते हों। उन्होंने कहा कि पृथ्वी के समुद्रों के इन कठोर परिवेशों में जाकर और अध्ययन करने की जरूरत है। इन जीवों की खोज के बाद लगता है कि अन्य ग्रहों पर भी किसी रूप में जीवन हो सकता है जहां का वातावरण हमारी पृथ्वी से भिन्न है।

Vikas Sharma
bundelkhandlive.com
E-mail :
Ph-09415060119

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महिलाओं को मिलेगी आज़ादी कांटे वाला फीमेल कॉन्डोम रोकेगा बलात्कार

Posted on 24 June 2010 by admin

aaसाउथ अफ्रीका की डॉक्टर सॉनेट एहलर्स ने ऐसा फीमेल कॉन्डोम डेवलप किया है जिसके इस्तेमाल से बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों पर रोक लग सकती है। बलात्कार की कोशिश करने वाले पुरुष को अपनी इस हरकत की सजा मिलेगी। बलात्कार की कोशिश करने के बाद उसे दिन में तारे नज़र आने लगेंगे और उसके गुप्तांग में बेहद तेज दर्द होगा। पुरूष को ज़माने भर की जग-हसांई मिलेगी सो अलग से।

‘रेप एक्स’ (यानि बलात्कार पर कुल्हाड़ी) नाम के इस कॉन्डम की खासियत यह है कि इसमें कांटों की एक कतार जैसी लगी होती है। अगर कोई पुरुष बलात्कार करने की करता है और महिला की योनि में अपना गुप्तांग प्रविष्ट करवाता है तो इस अनोखे कॉन्डोम पर लगे दांतों जैसे कांटे उसके पेनिस को जकड़ लेते हैं। पुरूष अपने पेनिस को निकालने की जितनी ज्यादा कोशिश करेगा, इन कांटों की पेनिस पर पकड़ और भी ज्यादा गहरी होती जाएगी। बलात्कारी पुरूष ना तो टॉयलेट जा सकेगा और न ही चल-फिर पाएगा।

ये चमत्कारी कॉन्डोम ‘रेप एक्स’ सिर्फ डॉक्टर की मदद से ही निकलवाया जा सकेगा। डॉक्टर एहलर्स ने बताया कि चूंकि ये कांटे घाव नहीं बनाते इसलिए पीड़ित महिला को हमलावर के शरीर से निकलने वाले किसी भी प्रकार के द्रव के संपर्क में आने का खतरा नहीं रहता है।

इस कॉन्डम को 20 बरसों के रिसर्च के बाद बनाया गया है। फिलहाल ये ट्रायल पीरियड में है लेकिन जल्द ही यह लगभग 100 रुपये में मिलने लगेगा। यह उन महिलाओं के लिए फायदेमंद होगा जिन्हें जोखिम भरी जगहों  पर जाना हो।

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जीवन की उत्पत्ति सतत प्रक्रिया का परिणाम

Posted on 07 March 2010 by admin

रुड़की - एस.एन .बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंस और इण्डियन सेंटर फॉर स्पेस फ़िजिक्स, कोलकत्ता के रिसर्च साइंटिस्ट सन्दीप के.  चक्रवर्ती ने कहा कि जीवन की उत्पत्ति एक सरल प्रक्रिया है और केमिकल मॉलीकूल्स इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि स्टार फारमेशन के दौरान कई के मिकल मॉलीकूल्स निकलते हैं, जो लाइफ के लिए अति आवश्यक हैं।

चक्रवर्ती आईआईटी के रसायन विभाग की ओर से आयोजित अन्तरराष्ट्रीय कार्यशाला में विचार व्यक्त कर रहे थे। आईआईटी के ओ.पी. जैन सभागार में आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन भी वैज्ञानिकों ने केमिकल इवोल्यूशन एण्ड ओरीजन ऑफ लाइफं को लेकर मन्थन किया। इस दौरान रिसर्च साइंटिस्ट सन्दीप के. चक्रवर्ती ने इवोल्यूशन ऑफ काम्पलेक्स मॉलीकूल्स डज्ञूरिंग द कोलैप्स ऑफ मॉलीकूलर क्लाइड एण्ड स्टार फारमेशनं पर विचार व्यक्त किया।

उन्होंने कहा कि स्टार फारमेशन में एमीनो एसिड, आर.एन.ए. डी.एन.ए. सहित कई केमिकल मॉलीकूल्स निकलते हैं जो जीवन की उत्पत्ति में अहम है। उन्होंने स्टार फारमेशन की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला। कहा कि इसमें लगभग एक करोड़ वर्ष का समय लगता है। इस दौरान कई मॉलीकूल्स खत्म भी हो जाते हैं। वहीं फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद से आए रिसर्च साइंटिस्ट बी.जी. आनन्दाराव ने मॉलीकूलर डाग्नोस्टिक इन आस्ट्रोनोमीं पर प्रकाश डाला। इससे पहले कार्यशाला के आयोजक और आईआईटी रुड़की में रसायन विभागाध्यक्ष डा. कमालुद्दीन ने कहा कि मंगल ग्रह पर हीमेटाइट और पानी मिला है जो केमिकल इवोल्यूशन और मॉलीकूल प्रॉड्क्सन में भी दर्शाया गया है। इसके अलावा उन्होंने अन्य ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाओं के बारे में जानकारी दी।

कार्यशाला में देश-विदेश से लगभग 100 साइंटिस्ट हिस्सा ले रहे हैं। इसमें अमेरिका, रूस, यू.के., ईरान आदि देशों के साइंटिस्ट भी शामिल हैं।

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1750 मिलियन वर्ष पुरानी हैं विंध्यपर्वत चट्टानें

Posted on 22 January 2010 by admin

चित्रकूट(उत्तर प्रदेश)-विंध्य पर्वत श्रृंखला चट्टानों की वास्तविक आयु का पता भू-वैज्ञानिकों द्वारा लगा लिया गया है। देश-विदेश के भू वैज्ञानिकों के दल ने शुक्रवार को जनपद के आधा दर्जन स्थानों का भ्रमण करते हुए सेमरी सिरीज व फास्फैटिक नेचर के पत्थरों का अध्ययन किया। जिसके बाद उन्होंने इन चट्टानों की आयु 1750 मिलियन वर्ष बताई। इसके साथ ही भू-वैज्ञानिकों ने पूर्व में हुए अध्ययनों को खारिज करते हुए स्ट्रोमेटेलाइट (चूना पत्थरद्ध चट्टानों से इनका जीवन स्तर बताया है। पीएसआई व बीएसआईपी लखनऊ के तत्वावधान में चल रहे संयुक्त संरक्षण में शामिल भू वैज्ञानिकों का यह दल चित्रकूट के बाद सीधी, मैहर, पन्ना का अध्ययन करने के बाद खजुराहों में 31 जनवरी को आयोजित कार्यशाला में वैज्ञानिकों का यह दल अपनी रिपोर्टें भी प्रकाशित करेगा। 22ckt71

1750 मिलियन वर्ष पुरानी हैं विंध्यपर्वत चट्टानें
देश-विदेश के 26 भू-वैज्ञानिकों ने किया क्षेत्र का सर्वेक्षण
तेल व पोटाश मौजूद होने की संभावनाए भी तलाश रहे हैं
पीएसआई व बीएसआईपी लखनऊ के तत्वावधान में चल रहा है सर्वेक्षण

पेलेंटोलॉजिकल सोसाइटी आफ इण्डिया व वीरबल साहनी पेलियो वॉटनिकल सोसाइटी आफ इण्डिया लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में निकले भू-वैज्ञानिकों की कार्यशाला के आर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डा. मुकुन्द शर्मा ने बताया कि विंध्यपर्वत श्रेणियों की आयु निर्धारण के बारे में तमाम भ्रान्तियां फैली हुई हैं। इन्ही भ्रान्तियों को दूर करने के लिए देश-विदेश के 26 भू-वैज्ञानिकों का यह दल शुक्रवार को जिले के ददरी-हनुमानधारा, कामतानाथ-खोही, संग्रामपुर व जानकीकुण्ड चरण चिन्ह स्थल पहुंच सेमरी व कैमूर सिरीज के अन्तर्गत मिलने वाली अवसादी संरचनाओं का अध्ययन किया। जिसमें जानकीकुण्ड चरण चिन्ह के समीप फास्फेटिक नेचर के स्ट्रोमेटेलाइट हैं। जिससे स्ट्रोमेलेटिक लेटिकल अर्थात जीवन की शुरुआत की परिस्थितियां देयक हैं। उनका कहना है कि इस पर देहरादून के भू-वैज्ञानिक रफत जमाल आजमी ने चित्रकूट की चट्टानों को 542 मिलियन साल बताया है। जबकि जर्मन वैज्ञानिक एडोल्फ जाइलाइवर का मानना है कि यहां की चट्टानों का जीवन स्तर काफी ऊंचा है जो फील्डवर्क के माध्यम से मालूम हो चुका है कि कैमूर का बलुआ पत्थर एक हजार मिलियन वर्ष से अधिक पुराना है। इससे इन दोनों भू-वैज्ञानिकों की धारणाएं गलत साबित होती हैं। भू-वैज्ञानिकों का यह दल आज शनिवार को भी जिले के कई क्षेत्रो का भ्रमण करते हुए सज्जनपुर-मैहर व पन्ना के हीरा खदानों में भी भ्रमण कर उन पर्वत श्रृंखलाओं की आयु निर्धारित करने के बाद 31 जनवरी को खजुराहों में होने वाले भू-वैज्ञानिकों के सम्मेलन में यह दल अपने शोध पत्रो के माध्यम से विंध्यपर्वत श्रृंखलाओं की आयु निर्धारण पर अपनी वृहद रिपोर्ट पेश करेगा।   वहीं इस दल में शामिल ग्रामोदय विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक प्रो. रवि चौरे व लखनऊ के डा. एस कुमार ने इन चट्टानो की आयु 1750 मिलियन वर्ष से छ: सौ मिलियन वर्ष आंकी हैं। उनका कहना है कि इसका प्रमाण इन पत्थरों में मिलनेवाले स्टेमेटिक व ग्योलोकोनेटिक (हरितद्ध पत्थर का द्योतक) कहा है।

इस दल में शामिल कई वैज्ञानिक इस क्षेत्र में पोटाश व तेल का पता लगाने भी आए हैं। पीएसआई व बीएसआईवी लखनऊ के तत्वावधान में हो रहे भू-वैज्ञानिकों के इस सर्वेक्षण दल में ओएनजीसी के डा. एम मुखप्पा , वाडिया इंस्टि्यूट आफ हिमालय जियोलॉजी के डा. बीएन तिवारी, वीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के डा. श्रीकान्त मूर्ति, प्रो. सुरेन्द्र कुमार, लखनउ विश्वविद्यालय के शोध वैज्ञानिक सन्तोष पाण्डेय, कनाडा के एन जे बटरफील्ड, यूएसए के डा. सुहॉय जॉय, नील रॉय मैक आदि वैज्ञानिक मौजूद रहे

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सौर ऊर्जा क्षेत्र में भी विश्व लीडर बनेगा भारत-प्रधानमंत्री

Posted on 11 January 2010 by admin

नई दिल्ली- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विश्वविख्यात आई टी सिलिकान वैलियों की तर्ज पर देश में सौर वैलियां बनाने की सोमवार को महत्वकांक्षी योजना पेश करते हुए उम्मीद जताई कि सूचना प्रौद्योगिकी की तरह ही आने वाले कुछ सालों में भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी विश्व लीडर बन कर उभरेगा।

मनमोहन सिंह ने यहां विज्ञान भवन में जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन का उद्घाटन करते हुए कहा कि जलवायु परिर्वतन की राष्ट्रीय कार्ययोजना में राष्ट्रीय सोलर मिशन का गौरवशाली स्थान होगा। उन्होंने कहा कि देश ही नहीं बल्कि जलवायु परिर्वतन पर काबू पाने के वैश्विक प्रयासों में भी यह बड़ा योगदान करेगा।

सिंह ने कहा कि इस महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य 13 वीं पंचवर्षीय योजना में 20,000 मेगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता पाना है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य है लेकिन मुझे यकीन है कि हम इसमें सफल होंगे।

मनमोहन सिंह ने कहा कि भारत को विश्व श्रेणी का वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी क्षमताओं वाला देश बनाने के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सपने के चलते हम परमाणु और अंतरिक्ष क्षेत्रों में विश्व के अग्रणी देशों में जगह बना पाए और बाद में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति लाने में सफल हुए।

सिंह ने कहा कि इन हैरतअंगेज कामयाबियों के बाद मुझे पूरा यकीन है कि परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और सूचना प्रौद्योगिकी की सफलताओं के बाद अब भारत जिस अगले वैज्ञानिक एवं औद्योगिक मोर्चे को फतह करेगा वह सौर ऊर्जा है।

अक्षय ऊर्जा मंत्री फारूक अब्दुल्ला, पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश और फिक्की के अध्यक्ष हर्ष पति सिंघानिया सहित सभागार में बड़ी संख्या में उपस्थित वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्ताओं और उद्योगपतियों के बीच मनमोहन सिंह ने कहा, यह स्पष्ट है कि अगर इस मिशन को सफल बनाना है तो बड़े पैमाने पर मंत्रालयों, अधिकारियों और उद्योगपतियों को तारतम्य बना कर काम करना होगा।

इस बात पर उन्होंने खुशी जाहिर की कि इस कार्यक्रम से फिक्की ने अपने को जोड़ा है। उन्होंने कहा कि इस मिशन में उद्योग की भूमिका निर्णायक होगी। उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा में ग्रामीण अर्थव्यस्था का कायाकल्प करने की क्षमता है। इस उद्देश्य से इसके उत्पादन और वितरण का पहले ही विकेंद्रीकरण किया जा चुका है।

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प्रवासी भारतीय वैश्विक नागरिक की जिम्मेदार भूमिका निभायें -राष्ट्रपति

Posted on 09 January 2010 by admin

नयी दिल्ली- प्रवासी भारतीयों से वैश्विक नागरिक के रूप में जिम्मेदार भूमिका निभाने की अपील करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने आज कहा कि आने वाले वर्षों में वे भारत के विकास की प्रक्रिया में अपने कौशल और धन, दोनों से सहयोग करें।

पाटिल ने आठवें प्रवासी भारतीय दिवस के समापन समारोह के अवसर पर कहा कि प्रतिभा और वित्तीय लिहाज से आप में अपार क्षमताएं हैं, जिनका भारत में निवेश किया जा सकता है। आने वाले वर्षों में भारत के विकास में हम आपकी अधिक हिस्सेदारी चाहते हैं। सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं में अधिक निवेश की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि सार्वजनिक..निजी साझेदारी वाली परियोजनाओं में भारत को काफी निवेश की जरूरत है। अगले पांच साल में बुनियादी ढ़ांचा परियोजनाओं पर 500 अरब डॉलर से अधिक की राशि खर्च करने की जरूरत होगी। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर हो रहे हमलों के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सरकार संबद्ध देशों की सरकारों से भारतीयों विशेषकर छात्रों की सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को मजबूती से उठा रही है। गरीबी, भूख और बीमारी को दुनिया के एक बड़े हिस्से की बड़ी समस्या करार देते हुए प्रतिभा पाटिल ने कहा कि आतंकवाद, आर्थिक विषमता और पर्यावरण क्षति के खतरे बढ़े हैं। ऐसे में हमें सोचना होगा कि हम विकास को कैसे प्रोत्साहित करें जो न्यायोचित, मानवीय तथा समावेशी हो और ज्ञान के अथाह भंडार का मानव स्थितियों में सुधार के लिये कैसे इस्तेमाल किया जाये।

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब हो सकेगी सेटेलाइट मैपिंग

Posted on 27 November 2009 by admin

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बहुत जल्द सेटेलाइट मैपिंग की जा सकेगी। सेटेलाइट मैपिंग शहर और कस्बों के विकास की योजना तैयार करने के साथ ही धरातल के भीतर छिपे खनिज पदार्थो की खोज में भी सहायक सिद्ध होगी।

भूगोल विभाग में डॉ. आरएन दूबे मेमोरियल रिमोट सेसिंग एण्ड जीआईएस लैब तैयार हो गई है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की आर्थिक मदद से तैयार उत्तरी भारत के इस पहले लैब का बहुत जल्द उद्घाटन होगा, जिसके माध्यम से यहां के छात्र उच्चस्तरीय शिक्षा के साथ ही प्रायोगिक ज्ञान भी प्राप्त कर सकेंगे।

सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रलय ने इस कार्य के लिए 65 लाख रुपये दिए थे। इसमें से 42 लाख रुपये सिर्फ उपकरणों पर खर्च किए गए हैं। कुछ कारणों से यह प्रोजेक्ट तीन साल तक अटका जरूर रहा पर अब लैब बनकर तैयार है। लैब में दो मेन सर्वर हैं, जिसकी कीमत पांच लाख रुपये है।

इटेंल जियान प्रोसेसर के साथ 72 जीबी के चार हार्ड डिस्क लगाए गए हैं, 21 इंच के कलर मानीटर के साथ जुड़े हुए हैं। मेन सर्वर से 20 कम्प्यूटर जुड़े हुए हैं। सात लाख कीमत का 80 जीबी हार्ड डिस्क और एओ साइज का स्कैनर भी लगाया गया है।

इस स्कैनर की खासियत यह है कि इसके जरिए 42 इंच तक लंबाई वाले किसी पेपर को स्कैन किया जा सकता है। अत्याधुनिक सेंसर युक्त इस लैब का हाल बनाने के लिए डॉ. आरएन दूबे फाउंडेशन की ओर से आठ लाख रुपये दिए गए थे।

भूगोल विभाग के प्रो.आलोक दूबे ने बताया कि यह लैब विद्यार्थियों की शिक्षा के साथ ही शोध कार्यो में भी काफी मददगार होगा। अभी तक विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान दिया जाता रहा है लेकिन इसके बाद वे लैब में आकर व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।

प्राकृतिक संसाधन एवं पर्यावरण के उच्च स्तरीय नक्शे तैयार हो सकेंगे। ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर तक की सूक्ष्मतम प्लानिंग में यह सहायक होगा।

कुलपति प्रो. आरजी हर्षे का कहना है कि इविवि में आधुनिक शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयास का एक कदम है यह लैब। इससे शिक्षा के स्तर को उठाने और विद्यार्थियों को अत्याधुनिक ज्ञान पाने में मदद मिलेगी।

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सफलता के लिये जटिल विषयों को सहज बनाना जरूरी

Posted on 15 November 2009 by admin

इलाहाबाद- कठिन विषयों की चुनौतियों के अनुसरण से ही बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की राह आसान होती है। अध्यापकों छात्रों में पनपती वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सकारात्मक दिशा देते रहना चाहिये। उक्त बातें अपर राज्य परियोजना निदेशक अशोक गांगुली ने शनिवार को 37वीं राज्य स्तरीय जवाहर लाल नेहरू बालविज्ञान प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर कही। उन्होंने प्रतिभागियों को दूर दराज के क्षेत्रों से विषम परिस्थिति में प्रतिभा प्रदर्शन पर संतुष्टि जतायी।

चार दिवसीय कार्यक्रम में प्रदेश के कई जिलों की 90 टीमें प्रतिभाग कर रही हैं। कार्यक्रम के पहले दिन छ: उपविषयों से पर आधारित प्रतिदर्श का प्रस्तुतिकरण किया गया। राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में जलवायु परिवर्तन, हरित उर्जा, जीव विज्ञान, संचार प्रौद्योगिकी, दैनिक क्रिया और गणित एवं खेलकूद में विज्ञान एवं तकनीक पर आधारित मॉडलों का प्रदर्शन किया गया। संस्थान की निदेशक भावना शिक्षार्थी ने बताया कि इस चार दिवसीय कार्यक्रम में मॉडल प्रदर्शन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जायेगा।

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नई कॉलोनियों में सौर ऊर्जा व्यवस्था अनिवार्य

Posted on 15 October 2009 by admin

रायपुर- छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में दो हेक्टेयर से अधिक रकबे में विकसित होने वाली कॉलोनियों में सोलर स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था अनिवार्य कर दी है।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार छत्तीसगढ़ में सौर ऊर्जा प्रणाली को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने दो हेक्टेयर से अधिक रकबे में विकसित होने वाली कॉलोनियों में अब सोलर स्ट्रीट लाईट की व्यवस्था अनिवार्य कर दी है। ऐसी कॉलोनियों में सड़क और खुले क्षेत्रों की कुल प्रकाश व्यवस्था में से 25 प्रतिशत व्यवस्था सौर उर्जा से की जाएगी। इन कॉलोनियों के भवनों और मकानों में सौर ऊर्जा आधारित गर्म जल संयंत्र की स्थापना का प्रावधान भी करना होगा।

छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण के अधिकारियों ने बताया कि कॉलोनियों में सौर ऊर्जा प्रणाली को अनिवार्य करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा।

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आईआईटी कानपुर का एफएम रेडियो अगले माह

Posted on 14 October 2009 by admin

कानपुर- नवंबर के अंतिम सप्ताह में आईआईटी कानपुर का एफएम रेडियो शुरू होने जा रहा है। इस कम्युनिटी रेडियो कम एफएम रेडियो की फ्रीक्वेंसी निर्धारित हो गई है।

यह पहला अवसर है जब देश में किसी आईआईटी में एफएम रेडियो की शुरुआत होने जा रही है। इसके साथ ही आईआईटी कानपुर के स्वर्ण जयंती वर्ष में एक और सुनहरा पन्ना जुड़ जाएगा।

इस एफएम रेडियो पर केवल फिल्मी गाने ही नहीं बल्कि बिस्मिल्लाह खान की शहनाई तथा शास्त्रीय संगीत भी सुनने को मिलेगा। साथ ही साथ भौतिकी, रसायन और विज्ञान के रहस्यों को सरल भाषा में बताया जाएगा ताकि आम जनता की विज्ञान जैसे नीरस विषयों में रुचि जगाई जा सके।

शुरू में इस एफएम रेडियो के कार्यक्रम दो या तीन घंटे के होंगे। धीरे धीरे यह समयावधि बढ़ाई जाएगी।

देश के किसी भी आईआईटी में पहली बार खोले जा रहे इस एफएम रेडियो स्टेशन को केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय से हरी झंडी मिल चुकी है तथा फ्रीक्वेंसी भी आवंटित हो गई है।

संस्थान ने परिसर में ही इसके लिए स्टूडियो का निर्माण कर करीब 22 लाख रुपये के उपकरण स्थापित किए हैं। इसका टावर तैयार है और प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों की रिकार्डिग शुरू हो चुकी है। आईआईटी प्रशासन को उम्मीद है कि नवंबर के अंतिम सप्ताह में यह एफएम रेडियो स्टेशन शुरू हो जाएगा।

आईआईटी कानपुर के रजिस्ट्रार संजीव कशालकर ने बताया कि किसी भी आईआईटी संस्थान में पहली बार खुलने जा रहा यह एफएम रेडियो स्टेशन अमेरिका के नेशनल पब्लिक रेडियो [एनपीआर] की तर्ज पर होगा। इसमें ज्ञान विज्ञान की बातों के साथ साथ शास्त्रीय संगीत का भी समावेश होगा। इस एफएम रेडियो स्टेशन पर भारतीय संस्कृति के अनछुए पहलुओं के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

उन्होंने बताया कि अमेरिका के किसी भी विश्वविद्यालय या कॉलेज में जाने पर हर कक्षा या कार्यालय में बहुत ही धीमी आवाज में एनपीआर बजता सुनाई देगा। यह अमेरिका का सर्वाधिक लोकप्रिय रेडियो स्टेशन है। इसी तर्ज पर आईआईटी में भी एफएम रेडियो स्टेशन की स्थापना की जा रही है।

उन्होंने बताया कि इस एफएम रेडियो की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि इस पर फोन इन प्रोग्राम भी चलाए जाएंगे। इनके तहत, आईआईटी के वैज्ञानिक और प्रोफेसर शहर के छात्रों और अन्य लोगों के विज्ञान से जुड़े प्रश्नों के उत्तर भी देंगे।

भारतीय संस्कृति की जानकारी के साथ-साथ इस रेडियो पर आईआईटी और अन्य कालेजों में प्रवेश संबंधी जानकारी भी उपलब्ध कराई जाएगी।

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