Archive | दुआ

Relief pain for flood victims

Posted on 13 October 2009 by admin

HYDERABAD- Ten days after Andhra Pradesh was ravaged by the worst floods in its history, the relief and rehabilitation work being set in motion
by the state government and the district administrations can at best be called chaotic. As a result, many victims are still to get either food, fuel or clothing. What has compounded problems is the tardy effort by civil society organisations, most of whom are content with making small contributions in cash to the CM’s relief fund.

Chief minister K Rosaiah, who undertook a visit of Kurnool and Guntur districts on Monday, continued to face the wrath of the flood victims who charged the state with displaying complete apathy to their plight. “When we distributed relief at some places on Monday, we realised that we were the first to turn up there to aid the flood victims,” a member of an NGO told TOI.

The chaos has been aggravated by the fact that various government agencies are working at cross-purposes due to the relief material being siphoned off before it could reach the victims. Civil supplies commissioner Sanjay Jaju, who is the nodal officer overseeing the relief, told TOI on Monday that government agencies had already distributed 10,000 tonnes of rice, 10,000 kilo litres of kerosene, 228 quintals of red gram, and 12,500 litres of palmolein to the victims so far.

“Each affected family is being given 20 kilos of rice and five litres of kerosene per month. We have enough stocks to look after the needs of about 10 lakh affected people for the next three months,” Jaju said. But sources said that these were paper transfers. Moreover, state disaster management committee officials claimed that the relief material will be sufficient only for five lakh people. But what is of concern is the fact that the rice and kerosene are not reaching the victims in many instances. “In Kurnool and Krishna districts, officials distributing relief are taking the material from the government depots but pocketing it midway. In Krishna, there is already a shortage of rice,” one district official said.

That there is no coordination whatsoever between the various government agencies was made clear by the fact that almost a week after the chief minister announced that rice at Rs 16 a kilo would be distributed to the victims from special counters set up at various places, no such centre has come up. “I have not got any communication to that effect,” Jaju said when asked about the distribution centres.

This being the plight with regard to the official relief distribution machinery, what appears to be providing some succour - albeit in a limited way - to the victims is the presence of voluntary agencies at many of the affected areas. “While some gave us used clothes, it’s only because of them that we have received some food and other material so far,” said a flood victim from Alampur in Kurnool district.

“We are facing problems too because when we are taking relief materials we do not know which agency to hand it over to. As a result relief materials are getting dumped and is proving to be of no use, “ said Harish Chandra Prasad, Confederation of Indian Industry (CII) chief for Andhra Pradesh. “That feeling of kinship, the feeling that my brother is in trouble and I must do everything that I can to help him in this hour of crisis is conspicuous by its absence,” points an NGO representative who worked in other parts of the country.

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बाढ़ पीड़ितों को एक लाख डालर देगा अमेरिका

Posted on 09 October 2009 by admin

नई दिल्ली- आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के बाढ़ पीड़ितों के लिए अमेरिका ने गुरुवार को एक लाख डॉलर के सहायता की घोषणा की।

बाढ़ पैकेज की घोषणा करते हुए भारत में अमेरिका के राजदूत टिमोथी जे रोमर ने कहा कि इससे जानमाल का व्यापक नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि दुख के क्षण में हम पीड़ितों एवं उनके परिजनों के प्रति संवेनदना व्यक्त करते हैं।

अमेरिकी दूतावास की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह बात कही गई है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि पिछले सात वर्षों में अमेरिका ने भारत को आपदा प्रबंधन गतिविधियों के लिए एक करोड़ 60 लाख डालर उपलब्ध कराए हैं।

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मंदबुद्धि बच्चों के हुनर से सजेंगे घर

Posted on 23 September 2009 by admin

लुधियाना के पॉश इलाके की एक गली में बने निर्दोष स्कूल के कमरों में मंद बुद्धि बच्चे दीवाली का सामान बनाने में व्यस्त हैं। सजावटी सामान बनाने की इनकी ललक देखकर किसी शायर की यह लाइनें याद आ जाती हैं ‘..ख्वाहिश को मत छूना वरना, उसकी कोख से बेकैफी बाहर आएगी।’

ये बच्चे खुद मानसिक रूप से विकलांग है, लेकिन दूसरों के जीवन में खुशियां लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। लोगों की दीपावली को खुशनुमा बनाने के लिए दीये, मोमबत्तियां व रंगोली को तैयार कर रहे हैं। इससे न केवल इन बच्चों को आर्थिक लाभ हो रहा है, बल्कि ऐसा करने से खुशी भी मिल रही है। दीपावली से पहले मंदबुद्धि बच्चों द्वारा सजावटी सामान बनाने में जुटे रहने से उनके चेहरे खुशी से चमक रहे हैं। दीपावली से पहले ही बच्चे रंग-बिरंगे दीए, मोमबत्तियां, रंगोली, डिजाइनर गिफ्ट पैकिंग पेपर, गिफ्ट पैकिंग, स्टोन व पेंटिंग किए क‌र्ल्ड कैरीबैग, ग्रीटिंग कार्ड बनाने में लगे हुए हैं।

सराभा नगर स्थित निर्दोष स्कूल के प्रिंसिपल सूरत सिंह दुग्गल ने बताया कि इस स्कूल में 48 मंदबुद्धि व मानसिक रूप से विकलांग बच्चे दीवाली पर लोगों के घरों में रोशनी व सजावट करने के लिए सुंदर व आकर्षित सामान बनाने में जुटे हुए हैं। प्रबंधकों की तरफ से स्कूल में त्यौहारों से पहले सारा समान उपलब्ध करवा दिया जाता है और इनको टीचर यह सजावटी सामान बनाने में पूरा सहयोग देते हैं। बच्चों ने बताया कि मैडम हमें चीजें बनाना सिखा रही हैं। दस वर्ष से यहां रह रहे 25 वर्षीय गौतम, 22 वर्षीय रिंपी, 24 वर्षीय देवेंद्र, 18 वर्षीय सूरज कालड़ा, 19 वर्षीय विक्की ने तोतली आवाज में बताया कि यह उन्होंने बनाया है। सूरत सर की तरफ इशारा करते बच्चों ने कहने की कोशिश कि वह रंगोली के पैकेट भरना, ग्रीटिंग कार्ड व पैकिंग पेपर बनाने में मदद करते हैं। हर तरफ से दीदी-मैडम की आवाज लगाते बच्चे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे और सब यह कहने की कोशिश में थे कि देखो हम क्या कर रहें है। 19 वर्षीय नरिंदर, 21 वर्षीय गोपाल, कोमल, जसकिरत, लव, बबलू, आशुतोष, नवजाते, गुरविंदर व मोनिका ,सुखविंदर, लवप्रीत व विशाल सभी बच्चे पूरी तरह से मानसिक तौर पर विकलांग होने के बावजूद टीचरों की बात को ध्यान से सुनते हैं और टीचर जो सामान बनाने को कहती है, उसे ये बड़ी कोशिश से सही-गलत सामान बनाकर टीचर को दिखाते हैं और टीचर उन्हें सही बनाकर दिखाती हैं।

मंदबुद्धि व मानसिक तौर पर विकलांग बच्चों को प्रशिक्षित देने वाली टीचरों वरप्रीत कौर, गुरप्रीत कौर, गीत व प्रिंसिपल सूरत सिंह दुग्गल ने बताया कि इन बच्चों को प्रशिक्षित करना मुश्किल तो है। मगर इन मासूमों को सिखाने से जो खुशी मिलती है, उससे अहसास होता है कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सुबह से ही मंदबुद्धि बच्चों को नहाना, खाना-पीना, रहना, दूसरे से कैसे वार्तालाप करना, किसी को कैसे बुलाना, रिश्तों की समझ, दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली चीजों के बारे में, सड़क पर चलने के तौर-तरीकों व खेलों के बारे में सिखाया जाता है। इसके अलावा बच्चों को एसटीडी-पीसीओ चलाने, जूस बार, रिसेप्शन पर बैठने, दुकान पर बैठने, गिनती, रुपये-पैसे की पहचान, गिनना व उसके महत्व की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि यहां से कुछ सीखकर अपना रोजगार कर आत्मनिर्भर बन सकें।

प्रबंधकों ने बताया कि मंद बुद्धि बच्चों द्वारा दीपावली पर बनाए गए डिजाइनर व आकर्षित सजावटी सामान को प्रर्दशनियों, मेलों, क्लबों, मैरिज पैलेसों, स्कूलों में स्टाल लगाकर बेचा जाता है और उनसे मिलने वाले पैसे बच्चों की वोकेशनल एजूकेशन पर खर्च होते हैं। इस बार निर्दोष स्कूल के मंदबुद्धि व मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे जालंधर में होने वाले स्टेट लेवल पर होने वाले ओलंपिक स्पो‌र्ट्स में भाग लेने भी जाएंगे।

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जीवित रहते कर दिया नेत्रदान

Posted on 21 August 2009 by admin

चित्रकूट- अपने जिंदा रहते ही दूसरे की आंख बन जाने का काम बिरले ही करते हैं। मौत की चौखट पर आहट देती मैहर की मगन बाई आज भी उसके परिवार वालों के लिए जिंदा है। मरने से पहले उसने अपनी आंखें दान देकर एक नेत्रहीन व्यक्ति के जीवन में रोशनी भर दी। बीमार मगन की मौत सबके लिए उदाहरण बन गई।

सद्गुरु नेत्र चिकित्सालय जानकीकुंड के नेत्र विशेषज्ञ डा. सुशील त्रिपाठी के अनुसार मैहर निवासी मगन बाई बोहरा पिछले एक माह से गंभीर रूप से बीमार थी। उन्होंने चिकित्सालय को नेत्रदान करने की सूचना दी थी। इसी सूचना के आधार पर जानकीकुंड चिकित्सालय की एंबुलेंस मैहर पहुंची। सभी औपचारिकता पूरी करके आंख की पुतली लाकर ऐसे व्यक्ति को लगाई गई जिसकी दोनों आंखे गलत दवा डालने से खराब हो गई थी। नई आंखें पाने के बाद प्रसन्न युवक ने कहा कि अब उसके जीवन जीने की इच्छा बढ़ गई है। उसने बोहरा परिवार के प्रति कृतज्ञता जाहिर की।

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संजू अब इलाज के लिए नहीं तरसेगी

Posted on 21 August 2009 by admin

ग्वालियर- हृदय के दोनों वॉल्व खराब होने की बीमारी से संघर्ष कर रही युवती संजू को अब इलाज के लिए दरबदर नहीं भटकना पड़ेगा। रोटरी क्लब ग्वालियर और आईएएस अफीसर वाइफ ऐसोसिएशन ने संयुक्त रूप से उसका इलाज कराने का बीड़ा उठाया है। प्रशासन भी संजू की मदद को आगे आया है।

रोटरी क्लब के अध्यक्ष भूपेन्द्र जैन ने बताया कि गुरुवार की सुबह उनके पास एक व्यक्ति ने फोन करके संजू के इलाज के लिए एक लाख रुपए देने की बात कही और सम्पर्क होने पर तुरंत एक लाख रुपए दिए। दानदाता ने अपना नाम भी नहीं देने की बात कही है। वहीं कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने रेडक्रॉस सोसाइटी के माध्यम से 10 हजार रुपए इलाज के लिए दिए हैं।
आईएएस अफीसर वाइफ एसोसिएशन की ओर से निशाद अख्तर ने भी संजू के इलाज के लिए 40 हजार रुपए दिए हैं। श्री जैन ने बताया कि अब तक संजू के इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपए की राशि एकत्रित हो गई है तथा शुक्रवार को संजू को इलाज के लिए बिड़ला हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाएगा, जहां विशेषज्ञ डॉक्टर उसका इलाज करेंगे।

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मिला मातृत्व का अधिकार

Posted on 10 August 2009 by admin

ग्वालियर- गुजरात की एक गर्भवती मंदबुद्धि महिला के लिए पूरे देश ने हमदर्दी जताई, सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे शिशु पैदा करने का हक दिया। लेकिन ग्वालियर में तो इसकी पहल पहले ही हो चुकी है। यहां मानसिक आरोग्यशाला और अखिल भारतीय सामाजिक स्वास्थ्य संघ के महिला हाफ वे होम के सहयोग से दो मंदबुद्धि महिलाओं का मातृत्व अधिकार सुरक्षित किया जा सका।

इनमें एक तो अपने बच्चे को लेकर स्वस्थ हो घर जा चुकी है जबकि दूसरी नारी में जीवन को नई दिशा दे रही है, उसकी जुड़वा बेटियां एक सामाजिक संस्था की देखरेख में पल रही हैं।

अरुणाचल प्रदेश की रहने वाली कमला (परिवर्तित नाम) ने प्रेम विवाह किया, विवाह के बाद उसने मात्र सात महीने पति के साथ गुजारे होंगे कि पति अपने ही भाइयों के साथ चारित्रिक दोष लगाकर प्रताड़ित करने लगा। चूंकि पिता भी दूसरी जाति में शादी करने से नाराज थे, इसलिए कोई ठिकाना न मिलने पर वह पति के कहने पर दूसरे घर रहने लगी। वहां भी उसकी उपेक्षा हुई। बर्दाश्त से बाहर होने पर वह घर से भाग निकली। दरबदर ठोकर खाते हुए उसकी मानसिक हालत भी बिगड़ चुकी थी। जब ग्वालियर मानसिक आरोग्यशाला पहुंची तो उसे पांच माह का गर्भ था, स्थिति देख उसे हाफ-वे होम में शिफ्ट किया और इलाज के दौरान उसकी संतानोत्पत्ति करवाई गई। कुछ महीनों बाद ही उसे स्वस्थ हालात में बच्चे के साथ पिता के घर पहुंचा दिया गया।

सीमा (परिवर्तित नाम) के चार साल की विवाहित जिंदगी में ही उसके पति ने प्रताड़ना देनी शुरू कर दी थी जिसके चलते उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। इस स्थिति में ही वह डेढ़ साल के बच्चे के साथ

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अनाथ आश्रमों में शिक्षा की मान्यता नहीं

Posted on 19 July 2009 by admin

लखनऊ- राजधानी में प्राग नारायण रोड, मोतीनगर और मोहान रोड पर चल रहे अनाथ आश्रमों में शिक्षा का बुरा हाल है। इसमें से प्राग नारायण रोड में दस वर्ष तक के बच्चे रखे जाते हैं, जबकि मोतीनगर में दस से अठारह वर्ष तक की बालिकाएं और मोहान रोड में दस से अठारह वर्ष तक के बालकों को रखा जाता है।

अनाथ आश्रमों में बच्चों के रहने और खाने का तो पर्याप्त इंतजाम है लेकिन शिक्षा का स्तर पूरी तरह से डांवाडोल है। कहने को यहां पढ़ाया जाता है लेकिन इस पढ़ाई को बेसिक शिक्षा विभाग की मान्यता नहीं मिली है, जिसकी वजह से अनाथ बालक या बालिका जब 18 वर्ष की उम्र में बाहर निकलता है तो उसके पास पढ़ाई का कोई प्रमाण नहीं होता।

प्राग नारायण रोड स्थित राजकीय बाल गृह में बच्चों की कक्षाओं का कोई स्थान नहीं है। एक ही हाल के अलग अलग कोनों पर कक्षाएं लगती हैं। सत्र प्रारम्भ होने पर यहां बच्चों को कापी-किताब और यूनीफार्म के पन्द्रह-बीस सेट ही उपलब्ध कराये जाते हैं, बच्चों की संख्या यहां 57 है। नतीजतन एक-एक किताब में तीन से चार बच्चे पढ़ते हैं। कक्षाएं समाप्त होने के बाद बच्चे अगर किताबों के दर्शन करना चाहें तो वह संभव नहीं है। किताबें फटने के डर से उन्हें अलमारियों में बंद रखा जाता है।

स्टेशनरी की व्यवस्था दान दाताओं की ओर से हो जाती है। खास बात यह है कि बेसिक शिक्षा विभाग से इन कक्षाओं को मान्यता भी नहीं मिली है। लिहाजा यहां से निकलने वाले बच्चों के पास किसी भी कक्षा का प्रमाण पत्र ही नहीं होता। यही हाल मोहान रोड पर संचालित बाल गृह का भी है। यहां भी बाल गृह के संचालन के लिये आने वाली रकम से ही शिक्षण सामग्री की व्यवस्था की जाती है। शहर के एक किनारे स्थित होने के कारण यहां दान के रूप में मिलने वाली सामग्री भी बच्चों को नहीं मिल पाती है, जिससे यह बच्चे किताबों के साथ स्टेशनरी को भी तरस रहे हैं। मोतीनगर अनाथ आश्रम में हालांकि स्थिति अपेक्षाकृत ठीक है। जिला प्रोबेशन अधिकारी एसके मिश्रा का कहना है कि शिक्षा के मद में रकम न मिलने के कारण कम संसाधनों में बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है।

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आंख चाहने वालों की प्रतीक्षा सूची तीन साल तक पहुंच गई

Posted on 17 July 2009 by admin

जयपुर-इन्हें रोशनी मिल गई, लेकिन सभी इनकी तरह खुशनसीब नहीं हैं। एसएमएस अस्पताल में आंख चाहने वालों की प्रतीक्षा सूची तीन साल तक पहुंच गई है। यहां हर माह औसतन 4 से 5 आंखें ट्रांसप्लांट हो रही हैं, जबकि इस समय 150 से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें आंखों की जरूरत है। इसके अलावा शहर के कुछ निजी सेंटरों में भी आई ट्रांसप्लांट होती है। वहां भी प्रतीक्षा सूची बढ़ती जा रही है।

डॉ. अंशु सहाय के अनुसार कॉर्निया कैमरे की लैंस की तरह है। कॉर्निया से रोशनी अंदर जाकर रेटीना पर गिरती है इसके बाद फिल्म बनती है। कॉर्निया खराब होने पर रेटीना पर फिल्म नहीं बनती और इंसान अंधा हो जाता है। कई बार आंखों में संक्रमण, चोट या विटामिन-ए की कमी के कारण भी कॉर्निया खराब हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके कॉर्निया को निकालकर मशीन (एमके मीडियम) की सहायता से उसकी सेल्स डेनसिटी देखी जाती है। एक वर्ग मिलीमीटर स्क्वायर एरिया में तीन हजार से ज्यादा सेल्स होना अच्छे कॉर्निया की निशानी है।

जयपुर में कॉर्निया ट्रांसप्लांट की सबसे ज्यादा सुविधा है। यहां एसएमएस अस्पताल के अलावा लगभग 8 निजी अस्पतालों में कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया जाता है। जयपुर के अलावा उदयपुर, अजमेर, जोधपुर, गंगानगर, बीकानेर आदि में भी यह सुविधा उपलब्ध है।

काला पानी (ग्लूकोमा) के कारण सांगानेरी गेट की रहने वाली नेहा (9) की आंखों की रोशनी चली गई। चार साल बाद 24 फरवरी 09 को शहर के एक निजी अस्पताल में उसकी नई आंख लगीं। उसके पिता रमेश का कहना है बेटी का जीवन रोशन हुआ तो मेरी आंखों के आंसू नहीं रुक रहे थे। अब तो मैं जगह-जगह लोगों को आंखें दान करने का महत्व बताता हूं।

अजीतगढ़ के 60 वर्षीय अब्दुल गनी बुढ़ापे में तब असहाय होकर दूसरों पर निर्भर हो गए जब उनके आंखों की रोशनी चली गई। तीन साल इधर-उधर भटकने के बाद उन्हें एसएमएस अस्पताल में कार्निया ट्रांसप्लांट किया गया। गनी, अब खेत पर काम भी कर लेते हैं। अब वह सगे-संबंधियों और मिलने-जुलने वालों को समझाते हैं कि कब्र में जाने से पहले अगर आंख दान कर दी जाए तो उससे दो जिंदगियां रोशन होती हैं।

‘मनै दो महीना पैले नई आंख लगी है। या आंख कुण दान कर्यो मैं कोनी जाणूं, पण तड़कै आंख खुलतां ही ऊंकै वास्ते आत्मा सूं दुआ निकछ। ऊंका आंख दान करबा सूं म्हारै घर की जिंदगी सुधर गी।’ यह कहना है बगरू निवासी 32 वर्षीया रामप्यारी का, जिसे मई में एसएमएस अस्पताल में ‘नई आंख’ लगाई गई है। इंफेक्शन के कारण रामप्यारी की आंख खराब हो गई थी। अनपढ़ रामप्यारी अब गांव में नेत्रदान की शिक्षा दे रही हैं।

हर आई सेंटर पर लिस्ट बने कि कौन लोग कॉर्निया की वजह से ब्लाइंड हैं। लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं। इसके साथ ही कॉर्निया के ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, फिलहाल ऐसे ट्रेंड डॉक्टरों की कमी है।
आंख में किसी तरह का इन्फेक्शन होने पर डॉक्टर से इलाज कराए। कॉर्निया खराब होने से अंधे हुए लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है, ऐसे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके दान के लिए आगे आना चाहिए।
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अपने के बिछुड़ने के बाद परिजनों को आंखें दान करने के लिए तैयार करना बेहद मुश्किल है। ऐसे मुश्किल समय में किसी परिजन को आंखें दान करने के लिए तैयार करने में एक नाम याद आता है, चंदाबाबू सोनी। एसएमएस अस्पताल के मेडिकल विभाग में मलेरिया इंस्पेक्टर से रिटायर्ड चंदाबाबू आई बैंक सोसायटी में काउंसलर हैं। चंदाबाबू के नाम लोगों को जागरूक कर 361 आंखें दान करवाने का रिकॉर्ड है।

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उत्तर प्रदेश में समरसता दिवस के रूप में मना जन्मदिन

Posted on 20 June 2009 by admin

नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के जन्मदिन पर केक, गुब्बारे, फूल और पटाखे सबकुछ तो था। लेकिन नहीं थे तो बस बर्थडे ब्वाय। वह विदेश में हैं।

दिल्ली के 24 अकबर रोड स्थित कांग्रेस मुख्यालय के बाहर राहुल का 39वां जन्मदिन मनाने के लिए सुबह से पार्टी नेता और कार्यकर्ता जुटने लगे। राहुल के प्रशंसक फूल सिंह ने अमेठी के सांसद के दीर्घ जीवन की कामना के लिए दो पंडितों के साथ हवन का आयोजन किया। सिंह ने कहा कि हम उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वह एकमात्र नेता हैं जो देश के कल्याण के लिए सोचते हैं। युवाओं के एक समूह ने राहुल के जन्मदिन की खुशी में मिठाइयां बांटी और पटाखे छोड़े। लेकिन नेता की गैर मौजूदगी से उन्हें मायूसी हुई। राहुल के एक युवा समर्थक जितेन्द्र सिंह ने कहा कि उन्होंने युवाओं की कल्पनाओं को जगाया है। हम उनमें उनके पिता राजीव गांधी की छवि देखते हैं।

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी का 39वां जन्मदिन शुक्रवार को उत्तर प्रदेश में समरसता दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर प्रत्येक जिले में कार्यक्रम हुए, जिसमें खास था कांग्रेसजनों द्वारा दलित बस्तियों में सहभोज। इस सहभोज को कांग्रेस द्वारा दलितों में पैठ बनाने की नई मुहिम के रूप में देखा जा रहा है। बसपा ने इस सहभोज के विरोध में ‘शर्म करो’ रैली निकाली।

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