Archive | November, 2009

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अब हो सकेगी सेटेलाइट मैपिंग

Posted on 27 November 2009 by admin

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बहुत जल्द सेटेलाइट मैपिंग की जा सकेगी। सेटेलाइट मैपिंग शहर और कस्बों के विकास की योजना तैयार करने के साथ ही धरातल के भीतर छिपे खनिज पदार्थो की खोज में भी सहायक सिद्ध होगी।

भूगोल विभाग में डॉ. आरएन दूबे मेमोरियल रिमोट सेसिंग एण्ड जीआईएस लैब तैयार हो गई है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की आर्थिक मदद से तैयार उत्तरी भारत के इस पहले लैब का बहुत जल्द उद्घाटन होगा, जिसके माध्यम से यहां के छात्र उच्चस्तरीय शिक्षा के साथ ही प्रायोगिक ज्ञान भी प्राप्त कर सकेंगे।

सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रलय ने इस कार्य के लिए 65 लाख रुपये दिए थे। इसमें से 42 लाख रुपये सिर्फ उपकरणों पर खर्च किए गए हैं। कुछ कारणों से यह प्रोजेक्ट तीन साल तक अटका जरूर रहा पर अब लैब बनकर तैयार है। लैब में दो मेन सर्वर हैं, जिसकी कीमत पांच लाख रुपये है।

इटेंल जियान प्रोसेसर के साथ 72 जीबी के चार हार्ड डिस्क लगाए गए हैं, 21 इंच के कलर मानीटर के साथ जुड़े हुए हैं। मेन सर्वर से 20 कम्प्यूटर जुड़े हुए हैं। सात लाख कीमत का 80 जीबी हार्ड डिस्क और एओ साइज का स्कैनर भी लगाया गया है।

इस स्कैनर की खासियत यह है कि इसके जरिए 42 इंच तक लंबाई वाले किसी पेपर को स्कैन किया जा सकता है। अत्याधुनिक सेंसर युक्त इस लैब का हाल बनाने के लिए डॉ. आरएन दूबे फाउंडेशन की ओर से आठ लाख रुपये दिए गए थे।

भूगोल विभाग के प्रो.आलोक दूबे ने बताया कि यह लैब विद्यार्थियों की शिक्षा के साथ ही शोध कार्यो में भी काफी मददगार होगा। अभी तक विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान दिया जाता रहा है लेकिन इसके बाद वे लैब में आकर व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।

प्राकृतिक संसाधन एवं पर्यावरण के उच्च स्तरीय नक्शे तैयार हो सकेंगे। ब्लॉक और ग्राम पंचायत स्तर तक की सूक्ष्मतम प्लानिंग में यह सहायक होगा।

कुलपति प्रो. आरजी हर्षे का कहना है कि इविवि में आधुनिक शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयास का एक कदम है यह लैब। इससे शिक्षा के स्तर को उठाने और विद्यार्थियों को अत्याधुनिक ज्ञान पाने में मदद मिलेगी।

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एक कंस्यूमर के रूप में आपके अधिकार

Posted on 27 November 2009 by admin

यह आपका अधिकार है कि आपको किसी भी चीज की ज्यादा से ज्यादा वरायटी उपलब्ध हों, ताकि आप अपने मन मुताबिक चीज चुन सकें। अगर किसी वस्तु के लिए मनॉपली है, तो आपका हक बनता है कि उस चीज या सर्विस की अच्छी क्वॉलिटी आपको मिले। इसमें बुनियादी चीजें और सर्विस भी शामिल हैं।

आपको किसी भी चीज या सर्विस की क्वॉलिटी, क्वॉन्टिटी, शुद्धता, मात्रा और कीमत वगैरह जानने का पूरा अधिकार है। बेचने वाले का कर्तव्य है कि वह आपको इन सब बातों के बारे में सूचित करें। आपको अपने मन मुताबिक चीज चुनने या कुछ खरीदने से पहले उसके बारे में हर तरह की जानकारी लेने का अधिकार है।

यह आपका अधिकार है कि एक कंस्यूमर के रूप में आपकी बात सुनी जाए। इसके लिए अलग-अलग मंच हैं, जहां आप अपनी बात कह सकते हैं। मसलन, आप किसी सर्विस या प्रॉडक्ट से संतुष्ट नहीं हैं, तो आप उसके खिलाफ शिकायत कर सकते हैं और आपकी बात सुनी जाएगी।

आपको अधिकार है कि ऐसी सर्विस और वस्तुओं की मार्किटिंग से बचे रहें, जो आपकी सेहत और संपत्ति के लिए खतरनाक हैं। जो चीजें आप खरीदें, वे न सिर्फ आपकी फौरी जरूरतों को पूरी करें बल्कि यह भी आपका अधिकार है कि वे आपको भविष्य में भी किसी तरह का नुकसान न पहुंचा सकें।

अगर आपको धोखे से कोई गलत प्रॉडक्ट या सर्विस दी गई है, तो उसके बदले में आपको सही मुआवजा मिलेगा। ऐसा सिर्फ महंगी चीजों के लिए ही नहीं, सस्ती से सस्ती चीजों के लिए भी होगा। इसलिए अगर आपको किसी भी तरह की परेशानी होती है, तो शिकायत जरूर करें।

अर्थात जीवन भर सूचित उपभोक्ता बने रहने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार । उपभोक्ताओं, विशेष रूप से ग्रामीण उपभोक्ताओं की अज्ञानता उनके शोषण के लिए जिम्मेदार है । उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें उनका प्रयोग करना चाहिए तभी सफलतापूर्वक वास्तविक उपभोक्ता संरक्षण हासिल किया जा सकता है ।

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होटल-रेस्त्रां और मयखानों की हवा में घुला जहर

Posted on 26 November 2009 by admin

इंदौर- मध्यप्रदेश के दो बडे़ शहरों के होटल-रेस्त्रां और मयखानों में धूम्रपान से होने वाले वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों में बताए पैमानों से चालीस गुना ज्यादा है।

गैर सरकारी संगठनों-वालंटरी हेल्थ एसोसिएशन आफ इंडिया (वीएचएआई) और मध्यप्रदेश वालंटरी हेल्थ एसोसिएशन के संयुक्त अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है। अध्ययन के लिए भोपाल और इंदौर के होटल-रेस्त्रां और मयखानों को चुना गया था।

वीएचएआई के निदेशक डा. पीसी भटनागर ने बताया कि भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक स्थलों में वायु गुणवत्ता जांचने के लिए भोपाल में आठ और इंदौर में चार जगहों पर यह अध्ययन किया गया। अध्ययन के आंकड़ों का विश्लेषण न्यूयार्क के बफेलो स्थित रोजवेल पार्क कैंसर इंस्टीट्यूट में किया गया।

उन्होंने यहां जारी अध्ययन रिपोर्ट के हवाले से कहा कि इन 12 जगहों में से सात पर लोग होटल-रेस्त्रां या मयखाने के भीतर बीड़ी-सिगरेट फूंक रहे थे। यह सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध के कानून का उल्लंघन है। डा. पीसी भटनागर के मुताबिक इन सात जगहों पर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 से होने वाले वायु प्रदूषण का स्तर उन पांच स्थानों से छह गुना ज्यादा था, जहां धूम्रपान नहीं किया जा रहा था।

उन्होंने कहा, ‘इस अध्ययन से सामने आया कि धूम्रपान वाली जगहों पर हवा में पीएम 2.5 का स्तर काफी बढ़ा हुआ था।’

डा. भटनागर ने बताया कि पार्टिकुलेट मैटर 2.5 सांस के जरिए फेफड़ों में चले जाते हैं और कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं। ये कण बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए तो बेहद घातक हैं।

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NGO honours 13 women for contribution to society

Posted on 26 November 2009 by admin

New Delhi- Actress Sushma Seth, beauty care specialist Shahnaz Hussain and social activist Vimla Mahajan were among 13 women felicitated by an NGO here today for their contribution to the society and especially for the empowerment of women.

The Guild for Service recognised the contribution and work of the women on the occasion of National Integration and Empowerment Day of Women, marking the 92nd birth anniversary of late prime minister Indira Gandhi.

The Guild also organised a group marriage where 20 couples, who are financially backward and belong to different caste and religion, tied the knot. The marriages were without dowry and two widows also got married on the occasion.

Addressing the function, Women and Child Development Minister Krishna Tirath said men also had a great role in empowering women in the country.

“Women in today’s world can do anything.

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थर्ड वर्ल्ड वॉर की नौबत ला सकता है क्लाइमेट चेंज

Posted on 26 November 2009 by admin

जिस तरह क्लाइमेट चेंज दुनिया में भोजन की पैदावार और आर्थिक समृद्धि को प्रभावित कर रहा है, आने वाले वक्त में जिंदा रहने के लिए जरूरी चीजें इतनी महंगी हो जाएंगी कि उससे देशों के बीच युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाएंगे। यह खतरा उन देशों में ज्यादा होगा जहां कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसी स्थिति वर्ल्ड वॉर से कम खतरनाक नहीं होगी। एक नई अमेरिकी स्टडी में दावा किया गया है कि तापमान में एक डिग्री तक का इजाफा साल 2030 तक अफ्रीकी सिविल वॉर होने के रिस्क को 55 पर्सेंट तक बढ़ा सकता है। यानी महज अगले 20 वर्षों में अफ्रीकी देशों में संकट गहरा सकता है।

यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के इकॉनमिस्ट मार्शल बर्क द्वारा की गई है। इसमें कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज के कारण बनी स्थितियों में अकेले अफ्रीका के उप सहारा इलाके में युद्ध भड़कने से 3 लाख 90 हजार मौतें हो सकती हैं। इन युद्धों के भी हाल के युद्धों जैसे भीषण होने की आशंका है।

बर्क के मुताबिक, हमारी स्टडी में पाया गया कि क्लाइमेट चेंज 2030 में अफ्रीकी सिविल वॉर होने का रिस्क 1990 के मुकाबले 50 पर्सेंट तक बढ़ा सकता है। वजह यह है कि तब इंसानी जीवनयापन का संभावित खर्च काफी ज्यादा हो चुका होगा। ऐसा क्यों होगा, इस बारे में बर्क बताते हैं कि तापमान में थोड़े से भी बदलाव से फसल की पैदावार पर बड़ा असर होगा, जबकि उप सहारा इलाके के ज्यादातर गरीब आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर करते हैं।

द टेलीग्राफ ने यूसी बर्कले में इकनॉमिक्स के प्रोफेसर एडवर्ड मिगुएल के हवाले से बताया है कि जब तापमान बढ़ता है तो अफ्रीका में कई लोगों की जिंदगियां बड़े स्तर पर प्रभावित होती हैं। ऐसे में हाशिये पर मौजूद लोगों द्वारा कानून हाथ में लेने का रिस्क बढ़ जाता है। यह स्टडी इस मामले में खास है कि इसने पहली बार क्लाइमेट चेंज और युद्ध के बीच के लिंक को उजागर किया है। यह 20 ग्लोबल वॉर्मिंग मॉडलों से मिले डेटा पर आधारित है। साथ ही उप सहारा अफ्रीका में क्लाइमेट और युद्ध के बीच के संबंधों के ऐतिहासिक परीक्षण को भी आधार बनाया गया है। रिसर्चरों के मुताबिक, 1980 और 2002 के बीच सिविल वॉर अपेक्षाकृत गर्म वर्षों में ज्यादा हुए। जिन वर्षों में तापमान औसत से एक डिग्री ऊपर था, युद्ध का खतरा 50 पर्सेंट ज्यादा देखा गया।

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दिल्ली हाईकोर्ट में देश का पहला आबर्ट्रिशन सेंटर खुला

Posted on 26 November 2009 by admin

नई दिल्ली - लंदन व सिंगापुर की तरह भारत में भी कंपनी आदि के आपसी विवादों को निपटाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में बुधवार को आबर्ट्रिशन सेंटर का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने किया। इस अवसर पर केंद्रीय कानून मंत्री वीरप्पा मोइले, दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाह, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित व भारत के मुख्य महाधिवक्ता जीई वाह्नवती आदि मौजूद थे।

इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने कहा कि आबर्ट्रिशन के बड़ी तादाद में लंबित मामलों का निपटारा करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के मैकेनिज्म (एडीआर)को अपनाते हुए यह कोशिश होगी कि एक साल के भीतर विवादों का निपटारा कर दिया जाए। मध्यस्थता केंद्रों की तरह अब आबर्ट्रिशन के मामले निपटाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक आधुनिक व शानदार कोर्ट बनाया गया है। भारत में यह अपने तरह की प्रथम आबर्ट्रिशन सेंटर है जिसकी स्वायत्तता व कार्यकुशलता बनाए रखने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट के जजों की एक कमेटी भी बनायी गई है। इस सेंटर की कार्य कुशलता की जवाबदेही भी इसी कमेटी की होगी। उन्होंने बताया कि आबर्ट्रिशन सेंटर में दायर मुकदमों को आपस में बैठ कर दोनों पक्षों की सहमति से सुलझाया जाएगा और जो भी फैसला होगा उसको दोनों पक्षों को मानना होगा। उन्होंने कहा कि फैसले से सहमत न होने पर अपील का भी प्रावधान होगा परंतु इन अपीलों को छह माह के भीतर निपटा दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इस अवसर पर कहा कि भारत में वकालत के क्षेत्र में लोगों की मांग बढ़ी है और इस तरह के आधुनिक सेंटर खुलने पर उनके कार्यों का दायरा बढ़ रहा है। उन्होने भारत में पहला आबर्ट्रिशन सेंटर बनाने के लिए फंड देने पर दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री को धन्यवाद । अभी भारत में करीब 1500 आबर्ट्रिशन के मामले लंबित हैं। आबर्ट्रिशन सेंटर में अवकाश प्राप्त जजों के अलावा अनुभवी वकील, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटेंट व आर्किटेक्ट भी सदस्य होगें। 1990 में सिंगापुर में इंटरनेशनल आबर्ट्रिशन सेंटर की शुरूआत वहां के मुख्य न्यायाधीश की देखरेख में शुरू की गई थी।

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नदियों के किनारे चैनल, बावड़ी बनाकर रोकी जा सकती है बाढ़

Posted on 26 November 2009 by admin

कानपुर- गंगा,यमुना व कोसी नदियों के किनारे चैनल व बावड़ी बनाकर बाढ़ को रोकी जा सकती है। इन चैनल व बावड़ियों को को नहरों और तालाबों से जोड़कर बाढ़ के पानी को बाहर निकाल कर स्टोर करने के बाद किसान सिंचाई कर सकते हैं तथा इसका शोधन कर पेयजल के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। फ्यूचर फ्लड प्रिवेंशन टेक्नालाजी को प्रधानमंत्री कार्यालय से हरी झंडी मिल गयी है। दिल्ली में यमुना के किनारे पायलट प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया गया है। प्रोजेक्ट के पहले चरण के लिए केंद्र से 25 लाख की मांग की गयी है।

आईआईटी में ‘वाटर हार्वेस्टिंग, स्टोरेज व कंजर्वेशन’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में आईएआरआई न्यूक्लियर रिसर्च लेबोरेटरी के प्रोजेक्ट निदेशक डा.पीएस दत्ता ने बताया कि बाढ़ की विनाशलीला से हरसाल लाखों परिवार विस्थापित होते है। गांव के गांव उजड़ जाते हैं ।फसलों के नुकसान से भुखमरी की नौबत आ जाती है। गंगा-यमुना और कोसी की तबाही से सारा देश सिहर उठता है। बाढ़ व अकाल प्राकृतिक प्रकोप हैं। इनसे प्राकृतिक ढंग से ही निपटा जा सकता है। उन्होंने बताया कि बाढ़ और सूखे पर नियंत्रण के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बनायी गयीं। बड़े-बड़े बांध बनाये गये लेकिन परिणाम साकारात्मक नहीं रहा है। कोसी बांध परियोजना की विफलता से सभी वाकिफ हैं। दूसरी आ॓र किसान फसलों की सिंचाई के लिए मानसून का मूंह ताकते हैं। देश के 177 जिले सूखे की चपेट में रहते हैं तथा बाढ़ का पानी सबकुछ तबाह कर निकल जाता है।

डा. दत्ता ने कहा कि देश के विभिन्न नदियों के आकलन व बाढ़ की विभीषिका के गहन विश्लेषण के बाद निष्कर्ष निकाला गया है कि बाढ़ को रोका नहीं जा सकता है लेकिन इन्हें नियंत्रित कर पानी का सदुपयोग किया जा सकता है। देश में जितनी भी खतरनाक नदियां हैं उनके सामानांतर चैनल व बावड़ी का निर्माण कर बाढ़ के पानी के बहाव को नियंत्रित किया जा सकता है। बाद में इस पानी का उपयोग सिंचाई व पेयजल के रूप में किया जा सकता है तथा उसका उपयोग कर खेतों में पानी भी पहुंचाया जा सकता है।

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चश्मे की आवश्यकता घटाता है क्रिस्टालेंसः

Posted on 26 November 2009 by admin

क्रिस्टालेंस का इंपलांट मोतियाबिंद के इलाज में नई प्रगति है। क्योंकि यह लेंस न केवल दूर की नजर ठीक करता है बल्कि, करीब व दूर की दृष्टि को भी बेहतर करता है। इस प्रयोग से दैनिक जीवन के अधिकतर कार्यों जैसे- किताब पढ़ना, कंप्यूटर पर काम करना, टीवी देखना, कार चलाना सहित अन्य काम करने में चश्मे की आवश्यकता घट जाती है।

सेंटर फॉर साइट के मेडिकल डायरेक्टर डॉ.महिपाल सचदेव नेत्र संबंधी विभिन्न किस्म की सजर्री के बारे में स्थानीय होटल 32 माइल स्टोन में एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस सीएमई (कॉन्टिन्यूअस मेडिकल एजुकेशन) में सेंटर फॉर साइट के डॉक्टरों ने लासिक तकनीक व मोतियाबिंद के इलाज के क्षेत्र में नए विकास के बारे में जानकारी दी। साथ ही रेटिना से जुड़े रेटीनौपैथी, डायबिटिक, ए.आर.एम.डी सहित विभिन्न रोगों के बारे में भी बताया।

कार्यक्रम का आयोजन सेंटर फॉर साइट व एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया, गुड़गांव की ओर से किया गया था। सेंटर के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. अंशु अरोड़ा ने कहा कि लोगों को मैक्युलर डिजैनरेशन, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा के बारे में जागरुक रहने की आवश्यकता है।

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एचआईवी की रोकथाम में भारत का बेहतर प्रदर्शन

Posted on 25 November 2009 by admin

नई दिल्ली- एड्स पर नियंत्रण में भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है। यू.एन.एड्स और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार एचआईवी से सर्वाधिक प्रभावित कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में स्थिति बहुत सुधरी है। यहां 2000 से 2007 के बीच 15 से 24 वर्ष की युवतियों में एचआईवी का संक्रमण 54 फीसदी तक घटा है।

मंगलवार को जारी रिपोर्ट में भारत की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) की कोशिशों का लाभ इन राज्यों के 80 फीसदी सेक्स वर्करों तक पहुंचा है। 2003 से 2006 के बीच देश में सेक्स वर्करों के बीच एचआईवी का संक्रमण 10.3 प्रतिशत से घटकर 4.9 फीसदी रह गया है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले आठ सालों में दुनिया में एचआईवी के ताजा संक्रमण की रफ्तार में 17 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही इस लाइलाज बीमारी से मरने वालों की संख्या 10 फीसदी तक कम हुई है।

2008 में दुनियाभर में 3.34 करोड़ लोग एड्स पीड़ित थे, जबकि 2007 में यह संख्या 3.3 करोड़ थी। 2000 की तुलना में 2008 में एड्स पीड़ितों की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा थी।  दुनियाभर में अब तक 6 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से 2.5 करोड़ की मौत हो चुकी है।

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दहेज अभिशाप है समाज के लिए

Posted on 25 November 2009 by admin

नई दिल्ली- दहेज को एक सामाजिक बुराई करार देते हुए और उसे परिवार की ओर से तय विवाहों से जोड़ते हुए गृह मंत्री पी चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि दहेज लेना शादी से जुड़ा एक रिवाज माना जाता है और इस बुराई को समाज से भी मान्यता मिली हुई है।

चिदंबरम ने एक समारोह में दहेज के विरुद्ध बेटियों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हेतु एक राष्ट्रीय अभियान की शुरूआत करते हुए कहा कि भारत में ज्यादातर विवाह घर वालों द्वारा तय किए गए जाते हैं और इनमें दहेज लिया जाता है। उन्होंने कहा कि यह एक कड़वी सच्चाई है। गृहमंत्री ने कहा कि यह एक सामाजिक समस्या है और काफी लंबे समय से चली आ रही है। इसका हल समाज के सभी वर्गो के लोग मिल ही निकाल सकते हैं।

चिदंबरम ने कहा कि इस समस्या को हल करने के लिए देश के पढ़े लिखे लोगों को आगे आना चाहिए और उन्हें ही इस समस्या के निवारण के लिए चलाए जा रहे अभियान का नेतृत्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह किसी एक व्यक्ति की समस्या नहीं है इसमें जितने अधिक से अधिक लोग शामिल होंगे उतना ही इस बुराई को मिटाने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि दहेज की समस्या आज किसी एक विशेष जाति वर्ग में नहीं पाई जाती है सभी वर्गो में यह बुराई समान रूप से विद्यमान है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी वर्गो के लोगों को इस अभियान में शामिल होकर इसे सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

चिदंबरम ने कहा कि आज सबसे बड़ी आवश्यकता है कि लोगों को दहेज के दुष्परिणामों से अवगत कराया जाए, उनमें इसके लिए जागरुकता पैदा की जाए ताकि वे भी इस बुराई को समझें और उसके विरुद्ध आवाज उठाएं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री [स्वतंत्र प्रभार] कृष्णा तीरथ ने इस अवसर पर कहा कि आज पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति की अलग पहचान है और लोग इसके बारे में अधिक से अधिक जानने के इच्छुक है लेकिन इसके विपरीत आज विभिन्न रूपों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा हो रही है हमें मिलकर इसे रोकना होगा।

उन्होंने कहा कि सरकार ने इस दिशा में अनेक कानून बनाए हैं लेकिन यह समस्या केवल कानून बनाने से हल नहीं हो सकती है इसके लिए सभी समुदाय के लोगों को आगे आना होगा। कृष्णा तीरथ ने कहा कि हमारे देश में दहेज के विरुद्ध सख्त कानून बना है लेकिन इसके बाद भी दहेज की प्रथा जारी है इस बात को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। तीरथ ने कहा कि हम चाहते हैं कि स्कूल के बच्चे दहेज की इस सामाजिक समस्या को सही रूप में समझें और लड़कियां इस बात को कहें कि जब वह विवाह करेंगी तो दहेज नहीं देंगी।

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