भारतीय चेतना की सफलतम पूर्ण अभिव्यक्ति थे पं. दीनदयाल एवं स्वामी विवेकानन्द-गोविन्दाचार्य

Posted on 11 February 2013 by admin

अनेकता में एकता देखने की षक्ति स्वामी विवेकानंद ने सिखाई - डाॅ.अजीत दोवाल
स्वामी विवेकानन्द के सपनों का भारत पर चित्रकूट की राश्ट्रीय संगोश्ठी में हो रहा गहन मंथन

img_2048परिवार एक परम्परा हैं, परिवार एक चलती हुई इकाई है। भारतीय समाज रिस्तों से बुना हुआ समाज है। सबमें दिव्यता देखने की दृश्टि भारत में है। समरसता का स्वभाव है भारत, समन्वय का स्वभाव है भारत। हमने रावण की सोने की लंका को अपना नहीं माना हमने सुदामा की कंगाली को अपना माना। उपरोक्त बाते चित्रकूट की राश्ट्रीय संगोश्ठी में भारतीय जीवन दर्षन पर वक्ताओं द्वारा कहीं गई। दीनदयाल षोध संस्थान चित्रकूट द्वारा पं.दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि और स्वामी विवेकानन्द जी के सार्ध षती वर्श पर आयोजित स्वामी विवेकानन्द के सपनों का भारत विशयक दो दिवसीय राश्ट्रीय संगोश्ठी का उद्घाटन सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय के आॅडीटोरियम में प्रखर चिन्तक के.एन.गोविन्दाचार्य, विवेकानन्द इन्टरनेषनल फाउण्डेषन के निदेषक डाॅ.अजीत दोवाल एवं राश्टीय स्वयंसेवक संघ के मधुभाई कुलकर्णी, सतना सांसद गणेष सिंह, दीनदयाल षोध संस्थान के प्रधान सचिव डाॅ. भरत पाठक, संगठन सचिव अभय महाजन, हंगरी से मिस जूलिया हालसान, मिस रंका पालफलकी द्वारा स्वामी विवेकानन्द जी की प्रदर्षनी का अवलोकन करते हुये दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इस दौरान मुख्य वक्ता की आषंदी में बोलते हुए प्रखर चिन्तक गोविन्दाचार्य ने कहा कि भारत के नवमवेश में धुरी के नाते षरीर कम अषरीरक रूप में मार्ग प्रदान कर रहे स्वामी विवेकानन्द के सपनों के भारत को हम सबको मिलकर पूर्ण करना है। हमारे देष का चलन है कि कौन कितना जियाॅ कोई महत्व नही रखता है, लेकिन कौन कितना कियाॅ बहुत महत्व रखता है। भारतीय चेतना की सफलतम पूर्ण अभिव्यक्ति थे पं. दीनदयाल उपाध्याय, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा गांधी तथा महात्मा गांधी के मार्ग को प्रासंगिक रूप प्रदान किया राश्ट्रऋशि नानाजी देषमुख ने। भारत की सभ्यता और संस्कृति का आधार img_2032आघ्यात्मिक था। समाज और संस्कृति मिलकर ही तो भारत है। भारतमाता मिटटी नहीं है जगत जननी है, साक्षात जगदम्बा है। भारत में हर पहाड, हर छोटे पषु-पक्षियों और कण-कण में दिव्यता दिखाई देती है जैसी दृश्टि वैसी सृश्टि। भारत के मानस ने भौतिकवाद और पाष्चात्य की अमीरी को कभी स्वीकार नहीं किया। ये वो भारत है जिसने सोने की लंका को स्वीकार न करते हुये जलाकर माना है। नारी का सम्मान भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। भारत अखण्ड मण्डलाकार सृश्टि है। पं. दीनदयाल जी कहते थे कि विदेषी को स्वदेषानुकूल और स्वदेषी को युगानुकूल बनाना होगा। उसके लिये दीनदयाल षोध संस्थान युगानुकूल सफलता की कंुजी है। अपने मुख्य आतिथ उद्बोधन में डाॅ अजीत दोवाल ने कहा कि अनेकता में एकता देखने की षक्ति स्वामी जी ने हमें सिखाई हे। हमें यह नहीं मालूम कि हमें कहाॅ जाना है। और कहाॅ जा रहे है। स्वामी जी होते तो बताते कि हम लोग कहाॅ है और कहाॅ जा रहे है। जागने के बाद गति भी आवष्यक है और दिषा बोध की भी जरूरत है। इस दौरान अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मधुभाई कुलकर्णी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के सपनों का भारत कैसा हो इस पर पूरे देष में बहस चलती रहना चाहिये और इस प्रकार के वैचारिक कर्मक्रमों के माध्यम से मंथन होना चाहिये। राश्ट्रीय संगोश्ठी की स्वागत समिति के अध्यक्ष ग्रामोदय विष्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो. के.व्ही. पाण्डेय द्वारा अन्य राज्यों एवं विष्वविद्यालयेां से आये सभी कुलपति को स्वामी विवेकानंद की मूर्ति और उनकी जीवन दर्षन की पुस्तक प्रतीक चिन्ह स्वरूप भेट किया गया। तथा उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि जैसे कलकत्ता की काली माॅ ने नरेन्द्र को स्वामी विवेकानंद बनाया था। वैसे ही चित्रकूट के नन्हे-मुन्ने बच्चों को भी विवेकानंद बनने का स्वरूप मिले एैसी प्रभू कामतानाथ जी से प्रार्थना करता है। दीनदयाल षोध संस्थान के प्रधान सचिव डाॅ भरत पाठक ने आयोजन की भूमिका रखते हुये कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि और विवेकानंद जी की सार्ध षती अवसर पर आयोजित यह कार्यक्रम स्वामी जी के विचार युवा पीढी को मिल सकें और देष में एक सकारात्मक वातावरण मिले और जिस तरह से स्वामी जी ने हमें अपराधबोध से निकालकर एक नया कुछ करने का मार्ग प्रसस्त किया। आयोजन की कन्वेनर एवं संचालन कर रहीं उद्यमिता विद्यापीठ की निदेषक डाॅ नंदिता पाठक ने कहा कि पूर्ण रूप से भय मुक्त जीवन जीना एवं भय को छोड सत्य को साथ लेकर चलने वाले युवा की आज जरूरत है, ऐसे नेतृत्व की आवष्यकता है यही स्वामी विवेकानंद जी का स्वप्न है। इस अवसर पर उद्घाटन समारोह के मंच पर म0प्र0, राजस्थान, हिमाचल प्रदेष, img_2063छत्तीसगढ, उत्तरप्रदेष  के कई विष्वविद्यालयों के कुलपति उपस्थित थे। जिनमें प्रो.ए.डी.एन.बाजपेयी (हिमाचल प्रदेष), डाॅ0व्ही.एम.तोमर म0प्र0, डाॅ.मोहनलाल चीपा छत्तीसगढ, डाॅ. कुरियाला जी (म0प्र0), डाॅ. गोविन्द मिश्रा (म0प्र0) प्रो0रहस्यमनि मिश्रा म0प्र0, प्रो0अषोक कुमार सोनी म0प्र0, डाॅ.डी.पी.लोकनानी म0्रप्र0, डाॅ उमेष मिश्रा, प्रो.के.सी.घोश राजस्थान, डाॅ अवध दुबे उ0प्र0, डाॅ. ए.के.मेहता छत्तीसगढ, प्रो.के.बी.पाण्डेय म0प्र0, प्रो.बी.पाण्डेय. उ0प्र0, डाॅ.एस.चैबे म0प्र0, प्रो.यू.के.मिश्रा छत्तीसगढ, प्रो. जी.एस.मूर्ति. आ0प्र0, प्रो.टी. करूणकरण, प्रो. मिथिला प्रसाद त्रिपाठी उपस्थित रहें। उद्घाटन सत्र के उपरांत भारतीय जीवन दर्षन के रूप में स्वामी विवेकानंद के सपनों का भारत पर आधारित धर्म और षिक्षा का विशय युवा और गाॅव आदि सत्र कुलपतियों के द्वारा चलाए जाऐंगे।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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